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________________ स्या क० टीका-हिन्दी विवेचन ] [ ६१ , एलेन 'मरणजनकाटाजनकत्वलक्षणं तद् व्यापारविशेषणम् इत्यपि निरस्तम् इतरहिंसाजनकतटशाऽदृष्टाऽप्रसिद्धेन । मरणोद्देश्यकत्वमपि न मरणत्वप्रकारकेच्छाजन्येच्छापित्यम् धनादिलिप्सया हिंसायामव्याप्तेः किन्तु मरणजनफेच्छाविपयत्वम् तथा च क्रखङ्गद्दिसायामतिव्याप्तिः अत एव मरणकलकताबोधकविधियोधितकर्तव्यता कान्यस्वरूपाSपि न वा निर्वाह, प्रमादकृतहिंसायामव्याप्तेः विहितेऽपि श्येनादौ वदीयानामपि हिंसा व्यवहारात् अनेन रूपेण पाप जनकर गौरवासि दिग् , , I सकता' मह बात नहीं कही जा सकती क्योंकि अर्थप्रायश्चित्त का विधान को उसे हिंसा मामने पर ही उचित हो सकता है। अतः प्राणिवध का असफल व्यापार भी हिसारूप होने से उस में अध्याप्सि भय से हिंसा लक्षण में मरणोपधायकत्व का निवेश नहीं किया जा सकता | ( मररजनकादृष्टाजनकत्व का निवेश श्रप्रसिद्ध ) नया में असियाप्ति का धारण करने के लिये अष्टरूप व्यापारात्मक समय में मरणजनक अष्ट के अगमकत्व का भी निवेश करने से हिंसा का उक्त लक्षण निर्दोष नहीं हो सकता मर्योकि इन से हक में उत्पन्न होने वाले को वध्य में मरणानुकुल अदृष्ट को उत्पन्न करने द्वारा शत्रु का मारक मानने पर इस विशेषण से श्येन में अतिव्याप्सि का वारण तो हो सकता है, क्योंकि उसका अष्टात्मक उपागार महणजनका अष्ट का अजनक नहीं है अतः मरणजमकाष्टा जनकअमक सम्बन्ध से श्येनजन्यत्व को अप्रसिद्धि होने से उक्त सम्बन्ध से इयेाग्यरथ को भी अप्रसिद्धि होने के कारण श्येन में उक्त लक्षण का जामा सम्भव नहीं है. किन्तु अग्रहारमक व्यापार में उस निषेण करने पर लक्षण असम्भव से ग्रस्त हो जायगा, क्योंकि हिंसा से भो सट होता है वह भी अन्य हिंसा का जनक होने से उस हिंसा से होनेवाले मरण के जनक अष्ट का जनक होता है अत: मरणसनादृष्ट का अजनक अष्ट हो अरसिद्ध हो जाता है (मच्छाजन्येच्छाविषयत्व भी अनुपपत्र ) भरणोद्देश्यकटक का निवेश भी निर्दोष नहीं हो सकता, क्योंकि यदि उसे मरच्छा से अन्य इच्छा का अविरूप माना जायगा तो यद्यपि कूपनिर्माण तो मरणोश्यक न हो सकेगा क्योंकि कूपनिर्माण की इच्छा मरणेच्छा से जन्मा है और कूपनिर्माण उस का विषय है अविषय नहीं, और हिंसा मरणोद्देश्यक हो सकेगी क्योंकि उस की इच्छा मरणेच्छा से अन्य होती है, अतः हिंसा मासे अजयच्छा की विषय होती है तथापि मरणोद्देश्यकत्व का ऐसा निर्वाचन करने पर धन से की जानेवाली हिंसा भी मरणोद्देश्यक हो जायगी, जब कि वह मरणोद्देशान होकर धनलाभोद्देश्यक होती है, अतः मरणजमका विषय को हो मरणोद्देश्यक कहा आपना ऐसा कहने पर मलिप्सा से होनेवाली हिंसा मरणोद्देश्यक न हो सकेगी क्योंकि उस को इच्छा धनलाभ की इच्छा से होती है न कि मरनेच्छा से, अतः यह इलामको जनक होती है, साकार मरण की जनक नहीं होती। इसीलिये मरणजनक इच्छा का विषय न होने से ब्रह्मरोद्देश्पक
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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