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प्याक टीका -हिन्दी विवेचन ]
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यस्तु त पर्यु दासविषयप्राप्ने श्रद्धे रात्रिभित्रन्वरूपगुणविधानमेव दीक्रियने, न तु रात्रिभिमाऽमाधाम्यान्वेन निमित्वम् । विशेषण विशेषमा निगमनाकिटेणातिगौरमात । सरत्रापि सामान्यनिषेधविधायक्रवाह सान्वेन निर्मितन्वं परित्यज्य कन्वगहिमायां श्येन व मलबदनियामनुवन्धियान्वयपरित्यागमात्र किन मनाईयत, प्रवृत्तेस्तवदेवोपपत्तेः ।
क्योंकि गुणविधि या अधिकारविधि होने पर भी इस से रात्रियान में फलानुस्पायकता का बोध होने में कोई बाधा नहीं होगा।
[सामान्यविधि ययारूप में प्रक्षुम्णः] पधि यह कहा जाय विशेष का निपेशाने पर सामान्य विनि विशेषतापरक हो जाती है मोसिायास्त्र की यह व्यवस्था है. और इस को उपपत्ति नज पद से हो होती है अतः विशेषनिषेध विधि में ना पक्ष का तात्पर्य भिन्न अर्थ में मानना आवश्यक होता है। इसलिये न पा को भिन्नार्थक मानने पर 'रात्री मार्द्धन कुवात एस निषेधविधि में उक्त गीति से गुणविधि अपना अविकारविधिका झापावन तिन: क्योंकि मन परको भिन्मायक मानकाजसएक प्रयोअन विद्यमान है तब उसका प्रयोमानान्तर से सम्बन्ध जोग्ना अनुचित है" तो यह कहना ठीक मही है क्योंकि उक्त व्यवस्था में सामान्यबिधि में सकोग करना परता है । अत: ऐसी व्यवस्था करना उचित है जिस में सामान्यविधि अपने यथामत रूप में अक्षुण्ण रहे। एसप उचित यह होगा किन पव को भिन्नार्थक न मान कर अभावाधक माना जाय और निषेधविधि का विशेषणाभाव में ही सात्पर्य माना जाम। जेस, एत्रो भान ने कुर्षोत' इस मिषेष में सप्तमी विभक्तिसाहित रात्र पास का भय है रात्रिनिष्ठत्व विशेषण, अमावार्थक मञ् शम्न श्राद्ध में गनिनिष्ठत्व के समाय का बोध होगा, अतः इस निबंध से उसो श्राद्ध को बासग्यता प्राप्त होगी जो सप्रिनिष्ठ हो । अपषा रात्रि पाश और रात्रि मायामाब में विकल्प होगा, मिस का फल यह होगा कि कोई मनुष्य कमी रात्रिधार और कभी रात्रीधावत्याग दोनों पका सकेगा किम्स दोनों में एक विकल्प ही मोकार करना होगा. बह नियमितिरूप से विधान हो करे या नियमित रूप से राधिपाद का स्याग ही करे। इस व्यवस्था में ना पा को मिले अर्थ में लाशगिक मानने की आवश्यकता मही होती और सामाग्यविधि अपनं यथाभूत रूप में सुरक्षित रह जाती है। इस यस्था के अनुसार, हिस्यात् समतागि यह सामान्यभिषेक भी अपने सामान्य अर्थ में सुमित रहेगा. लक्षणा द्वारा यक्षीयपशु से भिन्न भूतों को ही हिंसा के विषय मेंस का संकोच न होगा, अत. ल सामान्य मिषध का विषय हो जाने से यज्ञीयाँहसा का भी अमर्थ साधनस्स विवाद है।
[सामान्यविधि के संकोच में पुक्त्यन्तर-तम्खण्डन] कम मितान ऐसे ई जी राम्रो भाव न कुनौस' इस निषेध बिधि में ना को प{ पास बोधक मानकर इसे प्रिभितरवरूप गुण का ही विधायक मानते है । ये श्रायविधायक बाप में प्रमावास्या का रात्रिमिम्मस्वरूप विशेषण से संकोच कर विभिन्नस्य विशिष्ट समावास्याम्पको धारका निमित्त नहीं मानते, क्योंकि पत्रिमिन्नत्व और अमावास्यास्प के परस्पर विशेष्यविशेषणाव में विनियममा