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________________ स्था का टीका और हिन्दी विवेचन ) [३ पतदेय भावयाइमूलभू-'न हिंस्याविह भूतानि' हिंसनं दोषन्मतम् । वाहवद चैधक स्पटनसर्गप्रतिषेधतः ॥४६॥ 'म हिस्याविह' इत्यत्रस्थहशब्दोऽन्यत्र योन्यः, तथा व 'न हिम्यात् भूनानीह' इत्यर्थः । इदं च "न हिस्यात् सर्वभूनानि" इति वेदवाक्ष्यस्मारकम् । इह पाये हिसनं राग-देष मोह-नृष्णादिनिबन्ध महिमामामान्यम् , बोषकृत अनिष्टजनकम् । स्पष्ठम्- अमंदिग्धतया मातम् - अभीष्टम | किंवत ? इत्याव-चनाके दारयन् दाहो न कार्यः' इनि वैद्यकनिषेधवाक्यनिषिद्धदाहवा । इस' इत्याह-नासर्गप्रतिशतका समस्याहारानिधमाधमन्ये निरूड लाक्षणिकप्रकृतबिध्यर्धस्य व्युत्पतिमहिम्ना मिपेभ्यनावच्छेदकावन्दनयाऽन्वयात् । एनेन 'मनार्थे लिहान्वयं कथं दोपकृत्वबोधः । प्रकृतनिषेत्रविधेः पापजनकन्वे निरूदलश गायां प दृष्टान्त नुपपत्तिः, इनि प्रकमाविष्यनिषेधस्य हिंसात्वमामानाधिकरपयेनाऽन्वयाद् नानुपपत्ति पनि निरस्तम , सामानाधिकरण्येनापि विधिशका विरहेण सामान्यत एवं निषेधान्ययस्वीकागत् ॥१६॥ जिस प्रकार सप्तारमोधक आगमों में गित हिप्ता पापनमक होती है उसी प्रकार बिहिन हिसा भी श्वेत वायथ्यमकमालभेत मूतिकामः'भूति सम्पत्ति का इक बापूवता के उवध से गुभ्र वण के बकरे का वध करे" से वैदिक विषिवाक्प जिसे रस का तापम बताते हैं -युक्तिपूर्वक विचार करने पर बापाप का जनक सित होती है। यदि यह कहा जाप कि-"शास्त्रीय विधिमालय जिप्स हिता का विधान करते हैं-किसे प्रष्ट का साधन बताते हैं. उसे पाप का जनक कहना उचित नहीं है:ती यह कथन ठीक नहीं हो सकता क्योंकि जम विषिवाक्य जी से हार का साधन बताते हैं उसो प्रकार 'मा तित्यान सर्वभूनामित किसी भी प्राणों को हिला म फरमी पाहिमे स प्रकार के निवेधक अचान सामान्यरूप से हिंसा मात्र को अनिम का साधन भी बताते हैं और यह सर्वमान्य सस्प है कि मिस कर्म को शास्त्र अनिष्ट का साधन साते है वह कर्म पाप का बना होता है क्योंकि पाप के द्वारा ही उस की अनिष्टसाधनता सिद्ध होती है ।४५|| ['न हिस्यात् सर्वभूतानि'-वेदवाश्यार्थ] ४६ वीं कारिका में भी पूर्वकारिका की हो बात पुष्ट की गयी है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है जो - हिस्यान भूमानि' इस भागको 'म हिस्सा भूतानि इE' इस रूप में पढ़ने पर लाभ होता है__ हिस्यात् सब नानि' इस देशनालय में सभी प्रकार को हिसा से. वाहे यह राग, व, मोझ सूक्षणा आधि किसी भी निमित से की जाय, अनिष्ट की उत्पत्ति होती है, यह बात असन्विश्वकप में कहा गया है और यह ठीक उसी प्रकार माम्य जिसप्रकार छक पाशा के अनुसार 'बाहो . काये.' हम निषेधधाम से मिषिद्ध सोना. पारा आधि धातु या प्राणो के अग आदि का बाह करने पर जप्त दाह से होने वाली अनिष्ट हो जात्पतिमा है।
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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