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[ शाश्वा मगुच्चय-
नसो ४४.४५
मुक्ति: रमानन्दप्रामिः, कर्मक्षयाविष्टा कमझायजन्याऽभिमतः, म च कर्मक्षयः, ज्ञानयोगफलम् रत्नत्रयमानाच्यजन्यः तजेतुःकारण च, अहिंसावि -हिंसाविरति. परिणामादि, इति गपः, सतां जैनागमोपनिषद्वदिनाम् , म्याग:मार्गः, मनाइटः । नदे संसारमोचकागमाऽसारमा प्रतिपादिना ॥४४||
पर यज्दन! सा: सदिय र पति-.. मूलम्-एवं वेदविहिताऽपि हिंसा पापाय तरणतः ।
शास्त्रचोदितभावेऽपि वचनान्तरणाधनात् ॥४॥ एवं संसारमोचकाभिमनहिंसावत् , बवविहिनाऽपि= श्वेतं वापसमजमालमेत भृतिकामः' इत्यादिविधिनेष्टसाधनत्वेन पावितापि हिमा, तस्वतः युक्त्या विचामाणा पापाय भवति । विधिबोधितत्ये कश्यमेवं स्यात् ? इत्यवाद-शास्त्रचोदितभावंडपि-प्रकृतविधियोधितेपसाधनताकत्वेऽपि वचनान्तरषाधनात्-सामान्यतः प्रश्न निषेधापधिनाऽनिष्टसाधनत्वेन योधनात् ॥४५॥
...-..(अहिसादि से ज्ञानयोग, उससे कर्मक्षय) ४५ वो कारिका द्वारा हसा आदि सामनों से ही कर्मों का अघ सम्पन्न होता हैस दूसरे पक्ष को ही न्याय-संगत बताया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
मुक्ति का अपई परमानन्द की प्राप्ति और परमानन्द का अप है अनमय की वह अवस्था, जिप्त में सिंचिमात्र मी दुःख के सम्पर्क की सम्भावना नहीं की जा सकती। यह मुमित मनुष्य को उस के समप्र कर्मों का क्षय होने पर ही सम्पन्न होती है और कौ का भय मानयोग है सम्पादित
मान का अर्थ है सम्यक मान और सम्यक शंन, योग का अर्थ है सम्यक चारित्र्य । यह तीनों महाफलप्रद होने से महमूस्य होने के कारण रस्न कहे जाते हैं। इन तीनो रस्नो का प्रमृत मात्रा में संषय होने पर ही कमो का क्षय होता है और इन रहनों की उपलधि हिसा आदि अर्यात हिसाअप्तस्य आदि प्रतिताब त्यागस्वरूप बिरसिमय चिसपरिणाम के प्रमाबमुक्त बीघकालीन सेवन से ही सम्भव होती है।
निहरू पहा कि अहिंसा आदि के सेवन से सम्यक मान. वर्शन और पारित हा अर्जन कर समप्र काँका अय करमा हो मःक्ष-प्राप्ति का निकटक माग है नाम के रहस्य को जानने वाले मनीषो पुरुषों को यही मभिमत है । इस प्रकार संसारमोचक आगमों को असारसा प्रतिपावित होती है। ४४||
(वेवविहित हिसा पापजनक है) ४५ को कारिका में संसारमोषक आगम के समान पाशिकों बादलों के भी आगमों को असारता बतामी गपी है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है