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________________ [३६ स्या० कटीका-हिन्दी विवेचन ] ! दोपाऽनिवारितन्यमेवोक्न भाषयतिमृलम्-मुखितः कर्मक्षयादेव जागते नान्यतः क्वचित् ।। जन्मादिहिना यत् तत् स एवान निरूप्यते ॥३९|| मुक्तिः कर्मक्षयादेश जन्महेतुपुष्पाऽपुण्यविलयन एवामाधारणतो, नान्यतः क्वचित दानादेः, अभय--सुपात्रदानादीनामपि व्यवहिन हेतुत्वात जिम्मादिहिता-जन्ममरणाधनाश्लिष्पा, घद यस्माइ हेतोः, सत्-तम्मात , स एष-कर्ममय एव, अन्न-प्रकृतस्थले निरूप्यते ॥३९॥ बंग ध्याधिग्रस्त मनुष्य को बाह आधि द्वारा भी चिकित्सा करते हैं । असः दुःखो प्राणियों को दु:ख से मुक्ल करने लिये उन की हिंसा करने में कोई अनौचित्य नहीं हो सकताको बहल्यम ठीक नहीं है क्योंकि अविरत अक्षोणसमग्रकर्मा औषों को डिसा करने पर अनन्तवमय योनियों में उन्हें भटकाना ही पड़ता है. न कि जमकी मुक्ति होती है 1 अता हिता का कार्य निम्बतीय ही है। इसके अतिरिवात महमी आपत्ति होगी कि जैसे-अगर Fखी जनों को दूख से मुक्त करने के लिये उनकी हिसा उचित है तय तो उसी प्रकार पापकर्म से विरत करने के लिये मुखी.जनों की मी हिसा चित हो सकती है। फलतः ससारमोचक आगम के अनुयायियों को अपनी अपूर्व करुणा से प्रेरित हो अपने कदम्ब को भी हिंसा न्याय प्राप्त होगी. तब यह हिसा करने में कोई हिचक न होनी चाहिये, किन्तु यह सम होता, अस. हित को मं मार पाया | इस स्थिति में आहत प्रागमों की यह मान्यता हो पायसंगत है कि मनुष्य सो दुःख के कारणभूत प्रश्रम से दूर हटाकर उसे धर्म का आचरण करने की प्रेरणा प्रदान करने से हो उपदेशक की करणाशोलता सिन होती है ॥३८॥ । वीं कारिका में 'मलतन्त्र, ससारमोचक माचि आगमों के मत में बोष का परिहार होता ही नहीं यह जो कहा गया इस बात की पुष्टि की गयी है। कारिका का अर्थ स प्रकार है- . . मुक्ति मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य है। उस की प्राप्ति से ही मामबजीवन को साईकता और कृतायता होती है, किन्तु जन्म की शाखा प्रमी रहने सक वस की प्राप्ति नहीं हो सकतो, अत: सन्म की शक खला का दुदना आवदया है. किन्तु वह काहला तब तक नहीं टूट- सकती जब तक उस के कारणभूत पुण्य पुण्य कमों का चयन हो । फलतः स्पस्द..हे कि अन्म के कारणभूत ममप्र कर्मों का अपनी भूमित का असाधारण कारण है, उसी से मुक्ति की प्राप्ति सम्भव है। राम, च्या आदि किसी. अस कारण से उस को प्राप्ति नहीं हो सकती। अभय एंव भुषाधान अर्थात चारित्रपा मुनियों को nिोष शिवा कावाम श्रावि भी अच्छी बात है किन्तु वह मुक्ति का सामात हेतु.न होकर सहित हेतु है । कर्मक्षम हये बिना केवल दाम मावि ध से मुक्ति प्राप्त करने की माता दुराका मात्र है। .. • . मत: मुक्ति जन्म-मरण से रहित होती है, जन्म-मरण का चालु रहते उसको प्रारित मही से.सतो, अतः याच जिम कमों पर आश्रित है इन कमो के भयका निरूपण अविरमक इसीलिये वर्तमान सादर्भ में कर्मक्षय का प्रसिंपावन हो प्रस्तुत है ॥३६॥ .... .
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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