________________
[ शो. वा. संयं स्तं २०३८
त्वेन तदुपशमेनैव तदुपशमात । तदुपशमार्थमेव च पापशमनार्थ जलपा मस्यंत्र मौनीन्द्रप्रवचनवचनामृतपानस्य न्याय्यत्वादिति । अधिकमध्यात्ममतपरीक्षायाम् ||३७||
अथ संसारमोचकागमेऽप्येतदविदेशमाह -
मूलम्-संसारमोचकस्यापि हिंसा
साधनम् । मुक्तिस्वास्ति ततस्तस्याप्येष दोषोऽनिवारितः ॥३॥
,
संसारमोश्वकस्यापि यद्=यस्मात् कारणात् हिंसा समाधनम् सूचितवास्ति 'अभ्युपगता' इति शेषः । ततः = तस्मात् कारणात् तस्याप्येपः पूर्वोक्तदोषोऽनिवारितः हिंसाया धर्मसाधनतामा लोकेटविरुद्धत्वात् तदुत्कर्षाभावेन सूक्त्यभावप्रसङ्गाच्च ।
3
,
1
स्थादेतत् - तृष्णानिमित्तंव हिंसा न धर्महेतुः नतूपकारनिमित्ताऽपि व्याधिनस्यासवैद्येन दाहादिकरणात् तथा दुःखिताना दुःखविघाताय हिमाभ्युपगमो न विरोत्म्यन इति । मैयम् अविरतानां इतनी जीवानां प्रत्यानन्नदुःखेष्वेव नियोजनात् । नैव सुखनामपि पापंवारणार्थं घातः स्यात् तथा चाडपूर्वकारुणिकम्येव तय कुटुम्बधानोऽपि न्यायप्राप्तः । तस्माद् दुष्टोऽयमभिनिवेशः । दुःखकारणाऽधर्म विनाशेन धर्मे नियोजनादेव च कारुणिकः सुपपद्यते इत्यार्हतमतं रमणीयम् ॥ ३८ ॥
,
--
इस प्रकार यह बात अवश्य माननी होयो कि विषय-सुख की इच्छा पानी पीने की इच्छा के समान विलष्ट कर्मोपाप कर्मो के उदय से उत्पन्न होती है. अत: उसका उपनाम उन कर्मों के उपशम मे ही सम्भव हो सकता है। इसलिये प्यास बुझाने के लिये जैसे पानी पीना अवश्यक होता है, उसी प्रकार विषयेच्छा का विशेष करने के लिये मोनोन्द्र भगवान द्वारा उद्भासित आगम के वचनामृत का पान भी आवश्यक है।
इस विषय में अधिक जानकारी 'अध्यात्म मत परीक्षा' प्रन्थ से प्राप्त की जा सकती है ।।३।। इस प्रकार मण्डतन्त्र आदि आगम को सदोषता सिद्ध की गयी।
[ संसारमोचकमत भी दोषाकान्त ही है ]
संसारमोक मागम में भी यही माना गया है कि हिंसा धर्म का साधन है. उस के उत्क से हो मुक्ति होती है बस उस मे भी पूर्वोक्तदोष का परिहार नहीं हो सकता, क्योंकि हिंसा धर्म का साधन है यह बात लोकविरुद्ध एवं इष्टविरुद्ध हे तयां अतीत अनागत, वर्तमान सभी प्राणियों की हिंसा सम्भव न होने से हिमा के उत्कर्ष की सिद्धिन हो सकने के कारण मुक्ति के अभाव की भी आपत्ति हो ।
[ उपकार बुद्धिप्रषत हिंसा में भी श्रौचित्य का प्रभाव ]
वि यह कहा जाय कि "तृष्णाश की जानेवाली हिंसा धर्म का साधन न हो, किन्तु उपकारबुद्धि से की जानेवाली हिंसा को धर्म का साधन मामले में कोई बाधा नहीं है. यही कारण है कि भाप्त