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[ शापासमुकचथ-सव २-
३.
एतदुपचयार्थमयादमूलम्-तच्चास्तु लोकशास्त्रोक्तं तत्रौदासीन्गयोगतः ।
संभाव्यले परं प्रेता माक्शुरुमहात्मनः ॥३॥ तरुषअगम्य, लोकशास्त्रोक्तं भगिन्यायेव अस्तु, शच्छिककम्पनाया अनामाणिकवाद । नत्रभगम्य, आवासीयधाममा माविमान प्रवृत, महात्मनः हदप्रतिज्ञस्य, भाषाब एकान्तबिहिमानुष्ठानसम्पसे,हिनिधितम् , परमेतद्-माध्यमध्यं, संभाव्यते, देशविरतिपरिणामेनानिकाषितस्य चारित्रमोहनीयस्याचिदेव झयमम्भवात् ।
स्यादेशद, इचछानिगेधान न मितिः, किन्तु यथेच्छ प्रवृपया सिद्धत्वज्ञानादेव, सती योगार्थ यथेच्छ प्रसिरेपोषिता का तत्र गम्यागम्यथ्यवस्था ? मैंवम् , यावत्सुखसिद्धवधियं यिना विशेषदर्शिनः सामान्येच्छाया अविच्छेदाम् , विशिष्य सिद्भवधियम्तु विशेपेच्छाया अनिवसकत्वात् , अन्यथा प्रोपितम्याज्ञासकान्लामरणस्य नन्कान्मावलोकनेच्छाऽभावप्रसाद अमिविषये इच्छाया अनिरोधाच्च । तम्मात् सामान्थेच्छाविच्छेदः सिद्धत्व
परिहार हो नहीं सकता । और यदि किसी में बच्चाको भित्ति माम कर प्राप्ति का अभाव माना नायगा तो इस प्रकार की वस्तु यदि स्त्री होगी तोशी अगम्य हो आपगी. फिर गम्म-अगम्प में मैव न कर सभी स्त्रियों में प्रवृत्ति कैसे सम्भव हो सकेगी? ॥३॥
(लोक शास्त्र कथित अगम्यादि में महात्मा का प्रवासीन्य) ३. वो कारिका द्वारा पूर्व कारिका में कथित अपप समर्थन किया गया है। कारिका का मर्ष इस प्रकार है
लोक और शास्त्र के अनुसार भगिनी आदि ही अगम्बई, क्योंकि गम्य अगम्य की मनमानीकल्पना प्रमाणहीन होने से मान्य नहीं हो सकती । अत: उस्कृष्ट कोटि का मास्यस्य अर्थात राग का पूर्ण मभाव तभी प्राप्त हो सकता है जब मनुष्य अपने में महात्मता स्थापित करे, लोक और शास्त्र में निखनीय कर्मों को म करने की अटल प्रतिमा करे, अपना नाप शुश रखे, लोक-पास्त्र में माग्य कर्मों का एकारसनिष्ठा से निरस्तर अनुष्ठान करे और अगम्य भगिनी आदि के समसम्म में सवासीमभावापस अर्थात राग-परहिल हो शुभ कमों में ही सबंध प्रवृत्त रहे।
ऐसे मनुष्य को उक्त माध्यग्य प्राप्त होने का कारण यह है कि मनुष्य को मामराजममम. परायणता और नियमों से मुख्य आदि देशविरति का परिणाम है और उस परिणाम से भोगेतर कारों से भी मा-योग्य चारित्रमोहनीय कर्म अति सविरतिपरिणामस्वरूप चरित्रभाव के
आगार (प्रतिबाधक) अमिमाचित मोहमीप कर्म का सीन हो बिनास हो जाता है। यह अनिका. चित इसलिए कहा कि निकाधित कर्म अवश्य भोक्तव्य है कि अमिकाषित कम बिता भोग किये तप से भो माया योग्म होते हैं।