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1०० टीका-हिन्दी विवेचन ]
पराभिप्रायसाह
मूलम् - यावदेवंविधं नेतन प्रवृत्तिस्तावदेव या ।
विशेषेण साध्वीति तस्योत्कर्ष प्रसाधनात ॥३५॥ सेरहेतुः कुतश्चिदनिवर्तनात ।
सर्वत्र भाषावादन्यथासंस्थितिः ॥३६॥
गावदेवंविधं सर्वत्रप्रतिरूपम् एतत् = माध्यं न भवति तावदेव या प्रवृभिः साऽविशेषेण गम्यागम्यादितुल्यप्तयेच साध्वी न्याय्या, तस्य = माध्यस्थ्यस्य, 'सामना' इति हेतोः प्रतियांय्यति निगर्वः ||३५||
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अत्रोनरमाह-'इयम्+अविशेषेण प्रवृत्तिः अप्रवृतेः हेतुने, कृतः १ इत्याह- सर्वत्र विपये, भावाऽपिच्छे शद इच्छानिवृश्यभावात् अन्यथा स्वचिदिच्छानिवृत्य की कारे, अमभ्यमस्थितिः==अगम्यव्यवस्था, यदिनरम्मन् प्रवृत्तिस्तस्यैवागम्यत्वादिति भावः || ३६ ||
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वैर आदि को निवृत्ति होने से द्वेष वासना का उन्मूलन हो जाता है। पुष्पशील मनुष्यों के प्रति की भावना से पुण्य न करने के पश्चाताप की नियति होने में पुष्पवासना का अबसार हो जाता है और पापी मनुष्यों में उपेक्षा तटस्थता की भावना स पापानुालक पश्चातापको निवृत्ति में पापवासना का अन्त हो जाता है । फलतः अशुक्ला कृष्ण-पूर्णसाश्विक पुण्य कर्मों में प्र और विस में प्रसन्नता के वध से उत्कृष्ट माध्यस्थ्य की प्राप्ति होती हैं। योगशास्त्रष्टा पि ने माध्यस्यसिद्धि की यही प्रक्रिया बतायी हैं।
तुल्यभाव साधु है ? ]
पैतीस
[ माध्यस्थ्य उदय के पूर्व गम्यागम्य में कारिका में मवाद का अभिप्राय बताया गया है जो इस प्रकार है-सम fare में अप्रवृतिरूप माध्यस्य जब तक नहीं सम्यक्ष शोला तब तक गम्य अगम्य सभी स्त्रियों में बिना किसी भेदभाव के प्रवृत होगा शो न्यायोचित है, क्योंकि इसी से माध्यस्थ्य का उत्कर्ष साबित हो सकता है। अध्यक्ष है कि मनुष्य को इच्छा प्राप्त में न हो कर अप्राप्त में ही होती हैं, अतः गम्य स्त्रियों के सम्पर्क से उन स्त्रियों की इच्छा तो न होती, पर अगम्य स्त्रियों की इच्छा जमी रहेगी
इकडा भी न हो एतवर्ष उनके साथ सम्पर्क करना भी आवश्यक है, क्योंकि तभी समस्त स्त्रियों में राशहस्य उत्कृष्टमध्यस्थ्य की सिद्धि हो सकती है।
[प्रवृत्ति से इच्छा प्रखंडित रहने से श्रप्रवृत्ति- माध्यस्थ्य का अनुदय ]
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सारिका में उक्त अभिप्राय को अयुक्तता बतायी गयो है जो इस प्रकार है- सम्पूर्ण free में अप्रकृति ही माध्यस्थ्य है, जो गन्ध अगम्य सभी स्त्रियों में प्रवृत होने से सम्भव नहीं है क्योंकि सर्वत्र होते रहने से किसी से भी निवृत्ति नहीं हो सकती, जब तक मनुष्य सयंत्र प्रवृत्त होता रहेगा तब तक सभी विषयों में उस को इच्छा बनी रहेगी और इच्छा रहते हुये प्रवृत्ति का