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[ शा० मा समुनषा-न०३ ३० ३१
शुद्भवासनया चैर्य मलिनवासना लीयते । तथा हि मुखिपु मैत्री भावयतः तदीयं सुखं मदीयमेवेति कुन्या 'सर्व सुखजातीयं में भूया' इति चिन्नामिका गगवासना निवतते । दुम्बिा करुण भावयतश्च यादिनिया पासना निवर्तते । पुण्यक्रमु मुदिता भावनात् पुण्याकग्णानुशपनिवृत्तेस्तामना नियनन । तथा पापापेक्षा भावयतम्सत्करणनिमितकानुशनिस्तद्वासना नियन्त इनि । तनी सुका कृणपुण्य निचत्तबमादायों पर मायमुल्यम् । इति पातजलाना प्रक्रिया ॥३॥
[वासना का स्वरूप और भेव] योगवासिष्ठ में वासना के सम्बन्ध में यह कहा गया है कि-हत भावना के कारण पूर्वापर विचारशा को त्याग कर वस्तु को ग्रहण करने का नाम है वासना | उस के वो भेष है मलिन और शुख। शुमवासना से तत्वज्ञान की प्राप्ति होती है. तत्वज्ञान का साधन होने की दृष्टि में वह वासना एकही कप की है किन्तु योगशास्त्र के प्रबल संस्कार से उस मंत्रो, कवणा, मुपता और उपेक्षा शम्चों सं विभाजित किया गया है। ___मलिन ासना के तीन मेव है-लोकवासना शावासमां और 'देहवासना । 'मैं ऐमा माधरण करेगा जिससे लोक मैं कोई भी व्यक्ति मेरी निन्या र सके' प्रकार मायकार्य करने का आग्रह होलोकवासना है। विषय 'लोकरञ्जन' अवाश्य और पुरुषाय सि के लिये अनुपयुक्त होने से इसे मलिन माना जाता है। शास्त्रवासना के तीन भेव हैं-पाठकसम-निरन्तर पसे रक्षम का व्यसम, बहशवयंस अनेक शास्त्रों को ही जानने का प्रयतम. ९वं अनुष्ठानस्यप्तानशास्वोस्त को जो
करतेशनेका व्यसन संचय कोमेसे. पवार्थकोतव में उपयंत नोने या प्रकार काकारणानेसे शास्त्रवासना को मलिन वासमा महा जाता। वासना के भीतीन मेव मारमस्वभ्रान्ति, आधि जन पदार्थों में मिals. गुणाधान भ्रान्तिको संदेह में रूपादि नमोन गुग का जवय होने की पारणा, तथा बोषापन पननान्तिकौ से येह को अशौचावि पोष दूर होने की बुद्धि ।
गुणाधाम दो प्रकार का होता है-लोकिक और शास्त्रीय . मेहको शब प्रादि विषयों के सम्यक सम्पायन को लौकिक गुणाधान कहा जाता है को महमान भावि के सम्पावनको शास्त्रीय गुणाधान कला गाता है वोपनयन मी लौकिक-शास्त्रीय भेव से दो प्रकार का होता है। मोपनाद्वारा वेहके व्याधि आदि को दूर करना लौकिक बोषापमयम है और शास्त्रानुसार स्नान आणि में at आदि को दूर करना शास्त्रीम बोषापनयन है। अप्रामाणिक, माश्य व पुरुषापे के लिये अनुपयुक्त तथा पुनम का हेतु होने से बेह वासमा को मलिन कहा जाता है।
शुन वासना. से मलिन पामना का विनाश होता है । जैसे मुखी मनुष्यों में मत्रो-मित्रता को भावना करने से पराये सुख को भी मनुष्य 'उसका मेरा हो सुख है' इमप्रकार अपनाहो सुख
ने अगता है। अतः आपने सुखको आकाक्षा समाप्त हो जान.से. 'मुझे सभी मुज प्राप्त होस प्रकार को रागवासना की निवृत्ति हो जाती है । इसी प्रकार तुःखीमनुष्यों में करुणा-कपा.की, मावमा से