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स्या० क० टीका-हिन्दी ]ि,
साद मण्डलादिवादिमते तं प्रदर्शयति
मूलम् - अगम्यगमनादीनां धर्मसाधनता क्वभित् । उमा लोकप्रसिद्धेन प्रत्यक्षेण चिरुध्यते ॥३०॥
अगम्यगमनादीनां -लोकशास्त्र निषिद्ध भगिन्या दिगमनमममश्रणप्रभृतीनाम्, कश्चित = मण्डलस्यादिन्ये श्रमसाधना उक्त | मा लोकप्रसिद्धेन विनादिसिर्द्धन 'महिन्यादिगमनादिकं न धर्मजनकम्' इत्याकारेण श्रमनिश्रितादिमतिज्ञानरूपेण प्रत्यक्षेण [विरुध्यते = ]वाध्यते । न मोक्तान किं तद्भावकत्वमिति प्राच्यम् वहमिदवेनास्यैव पलवस्यात् । न च 'शतमन पर्याधिमियोजक उपन्य जातीयत्यात्, अनुकूलतर्कसहकृतत्वात्ययम् । उक्तो लोकविरोधः ।
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हो सकता है। अतः इस अर्थ में' पर 'आप्तप्रणो के साथ नाशका समास मानने की आवश्यकता होने से 'ना' या 'माप्तप्रणीता' ठान् के सत्य को लेकर कोई प्रश्न हो नहीं ऊ सकता, क्योंकि कारिका में उक्त प्रकार के शब्द का निवेश हो न मान कर 'न' पत्र को असमस्त एवं 'आप्तप्रणीतता' पद के उत्तर योजनाएं मान सकते हैं ।
(अगम्यागमन से धर्मोत्पत्ति में प्रत्यक्ष माष)
जनेतर सभी आगमों में स्ष्टविशेष बताना है : ३० वी कारिकाद्वारा सर्वप्रथम मण्डल आदिवादियों के मत में ष्टविशेष प्रशित किया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
लोक और शास्त्र दोनों में भगिनों आदि को अगम्य- सम्पर्क के अयोग्य' मान कर उनके सम्पर्क का निषेध किया गया है। मांसभक्षण जसे कार्य भी छोक-शास्त्र दोनों में ही वमाये हैं। किन्तु मण्डलम् अवि प्रत्यों में उस सिन्ध कर्मों को भी धर्म का साधन बताया गया है। किन्तु उन कर्मों को धर्म हा साघन मानना ठोक नहीं है क्योंकि विज्ञान पुरुष से लेकर अशिक्षित नारी तक के लोगों को मिश्रित आदि मतिज्ञान के रूप में यह प्रत्यक्ष अनुभव है कि भगिनीगमन जैसे गत मे धर्म के साधन नहीं होते। अतः मण्डल से अन्य के बल पर लोकशास्त्र गति कम मैं अबाधित एमसाधनता को स्वीकार करना उचित नहीं है ।
( मण्डलतन्त्रीय श्रागम निर्बल क्यों है ?)
यदि यह शंका की जाय कि मण्डलतन्त्र आगम को ही उपत प्रत्यक्ष का बाधक क्यों न माना फाय" तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि उक्त प्रत्यक्ष बहुजनमान्य होन के कारण उक्त आगम से बलवान है। इस पर यह कर करना कि बहुजन मान्यता से किसी को बलवान् नहीं सिद्ध किया जा सकता, tfs संकटों अरबों का बचन एक सा के वचन से दुर्बल माना जाता है। अतः जो बहुजन माम होता है बाम होता है-इस नियम में कोई प्रयोजक नहीं है" ठीक नहीं क्योंकि मण्डलतन्त्र भाग से प्रत्यक्ष बलवान है। यह बात केवल बजायला पर ही आधारित नहीं है. अपितु उपलब्धता पर भी आधारित है। कहने का आशय यह है कि आगम वास्येन पक्ष