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________________ २६] [शा वा० समुच्चय न. ९-लो०-२७ मूलम-बमहत्यानिदेशानुमान प्रामाभिधामाद । ____ न मस्ता पर्वतशगमादेव' गम्यते ॥२७॥ ब्रह्महत्याया निवेश:न्य ब्राह्मणं च्यापादय, तनोऽहं नव ग्रामादि दास्यामि' इति गजात्रा, ननोऽनुष्ठानम-ग्रामइत्याकरणम् , नसी ग्रामादिलाभवत्स प्रामादिलाभो यथा प्राचीन पापानुबन्धिपुण्यादव, न पूनस्तन एवम्यानहल्याया पत्र, नया प्रकृतम्पीति भावः । ननु ब्रह्महत्यायास्नालबोधको न विधिः, इतरत्र तु तादावधिश्रवणा वगम्यम् , इत्यात आह एसइ-उपपादिनम् , आगमादंष गम्यत-आगम एव हि हिंसासामान्ये दुःखजनक बोधयति, तत्कथं स एवं हिंसाविशेषस्य सुग्यजनकत्व बोधयेत ! ति भावः । अधिकमने विचयिष्यामः । इत्थे चतदचश्ययम् , अन्यथा श्रोत्रियेणापि ग्तेमछादिकृतकर्मविशेपान फलविशेषदर्शनात किं तत्र ममाधान विधेयम् ? ॥२७॥ नन्यागमाऽपि प्रतिपक्षागमचापित एघेन्युक्तमेव, इत्यतस्तेषा निर्मलत्यनाऽप्रतिपक्षममवसरपंगत्याऽऽई (बह्महत्या प्रामाविलाभ का कारण नहीं हो सकती) क्रितो रामाने अपने किसी कर्मचारी को श्राशा दी कि "तुम ब्राह्मण का वध करो, में इस कार्य के पम्फारस्वरूप तुम्हे प्रामगर कर्मचारी ने धाक्षा मान कर प्राह्मण का किया. राजाने उसे पाम दिया। तो जिस प्रकार महप्रामलाभ पूर्वकृप्त पापातुबन्धो पुण्य का ही फल है.. कि ब्रह्महत्या का फल उसी प्रकार अन्य अशुभ कर्मों के अनुष्ठानसे होने वाला इष्टलाभ भी पूपात पापानवाची पुण्य का ही फल होता है, न कि उन अशुभ कर्मों का.-यहो मानना उचित है । अगर कहं बहाहाया करने से पाम लाभ होता हंस बात की तो बोध कोई शास्त्रीयविधिवाक्यही है किन्सु 'अमुक देवत। को अमुक बलि प्रधान करने से पुत्रादि को प्रर्ग होती है स बात का बोधक पास्त्रीय विविधामा है अतः इस विषमता के कारण उक्त दाम्त से प्रकृत कर्म के विषय में निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता'-तो बहू कयन ठीक नहीं है. क्योकि आगम हो हिंसामात्र में दुखजनकता का पोधात करता है। फिर वही हिसाबिशेष में मुखजनकम का बोधन कैसे कर सकता है। इस विषय का विस्तृत विवेचन आगे किया जामगा। इस प्रकार अशुभ कर्मों के ममुण्ठान से होनेवाले प्रष्टलाम के विषय में जोपास हो गया है, उसे स्वीकार करमा बावश्यक है, अश्यया किसी श्रोत्रिय को मलेठोचित कम करने से होनेवाले प्रष्टसाभ के सम्बम्ध में जब यह प्रश्न उठेगा कि यहाटलाभ म्लेच्छोषित कर्म का फल है? पापूर्वकृत किसी पुण्य का ? होस प्रश्न का क्या समाधान हो सकेगा? ॥२मा ___ हिसा वि से पाप और दुःख होता है तथा अहिसा आदि पुष्प और मुश होता है इस बात का प्रतिपादक आगम हिसाविशेष से सुन्नादि के जन्म का प्रतिपादन करने वाले प्रतिपक्षी आगम से बाधित ई-यह आक्षेप पहले किया गया है। अब उसके समाधान का अवसर प्रा है. अतः :-धी कारिका में प्रतिपक्ष भागमों को निर्वल बताते हुये उन्हें अभिमत आगमका अविरोथी मनाया गया है।
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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