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________________ स्थावर टीका-हिन्दी विवेचन ) F! .. उक्त काम E कम्पादकमपि नः कुतः १ इत्याह- श्चमि भरतादी, नथोपलम्भेऽपि दुःख पाहून्यदर्शने - ऽपि सर्वत्र महाविदेहादी, अदर्शनाद्-दुःखाल्यानुपलम्भात् । इतिः हेतु समाप्त्यर्थः ॥ २४ ॥ लम्- सर्वत्र दर्शनं यस्य ताक्यात् नि साधनम् ? साधर्न त अवश्यंभागमान्तु न भियते ॥२६॥ अथ यस्य सर्वत्र सर्वक्षेत्रेषु पाहुन्यदानं तत्रयात् दुःखान्ये आपाचव्यतिरेके नियमाप्राज्य, इति · [ ३ दर्शनं लान्त्रा साधनम् = उक्तप्रसङ्ग किन भने 56 7 तत्यानं भवत्येव तु पुनः एवम् उक्तप्रकारंण, आगया न भिद्यते श्रुतानुसारि मतेः श्रुतान्यभूतत्वात् । अत एव भन्यामध्यादिभावानां पूर्वम् तत्थ माओ मवियामयादओ भावा" इति गाधाप्रतीकेनाहेतुवादविषयत्वमुक्त्वापि भविओ सम्म गणना रिपबित्तिसम्पणो । णिश्रमादुक्तकडो नि लक्खणं हेवायम् ||" इति गाथानन्तरमागमोपगृहीन हेतुप्रवस्या हेतुवादयत्वमुक्तं भगवमा सम्मतिकृता इत्यव श्रेयम् ||२५|| मावि के धनकाय और अहिंसा आदि के धर्मानिकरण में एकमात्र आगम से प्रमाण है । अषियों के सम्बन्ध में आगम पहले यद्यपि प्रमाणाम्तर से अनधिगत वस्तु का ही प्रतिपन करता है। अतः आगमतिमालवस्तु हेतुभाव पर निर्भर नहीं हांसी तथापि याग में आगम के आधार पर प्रमाणान्तर को भी प्रवृत्त होने से वह वस्तु हेतुवाद पर भी आषिस हो जाती है. फिर भी 'जनत विषय में एकमात्र अगम ही प्रमाण है। इस व्यवस्था की अनुपपत्ति नहीं हो सकती क्योंकि आद्य प्रतिपादन की अपेक्षा हो यह व्यवस्था की गयी है। इसलिये जो अन्य गम और पुक्ति दोनों को अयार्थी का सायक बताया गया है उसका उतथ्यबस्था से कोई विरोध नहीं होता और अदृष्ट में को उपपति भी हो जाती है क्योंकि आरंभिक द्यप्रतिपादन के पूर्व उसमें अन्य कोसी प्रमाण की प्रवृत्ति नहीं हो सकतो २३ | चौथ कारिका में उक्त तक से उस विषय की सिद्धि में बाधक बनाकर आगम की साथकाका उपपादन किया गया है, वह इस प्रकार कि उक्त तर्क के अ सुख को अपेक्षा डु: महाक्षेत्र में बहुलता । बेल की को बात कही गयी है. यह भी मरतक्षेत्र में देखे जाने पर में उप न होने से उक्त विषय की सिद्धि में सहायक नहीं हो सकती ||२४|| सम्बादर्शन चामादो मामाभाव: (सम्प्रतिसूत्रे गाथा १४० ) ९ ज्ञानचारित्रप्रतिपत्तिसम्पन्न । नियभाग दुःखान्तकृत, इनि लक्षणं हेतुषः स्म ॥ सम्प्रतिगामा १४९) ३ भरमौर महाविदेहक्षेत्र के परिचय के लिये क्षेत्रमा बृहत् पणी हैं।
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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