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________________ २१] [शाचा समुच्चय-स्त. २. लोग २३-२४ कुतः । इत्याहमूलम-मातीन्द्रिये लागत प्राय गर्दनिधए, यद । छानस्थस्याऽविसंगादि मानमन्यात विद्यते ॥२॥ यच्चायतं कुम्वधारल्यदर्शनं तन्न साधकम् । क्वचित्त थोपलम्भेऽपि सर्वत्राऽदर्शनादिति ॥२४॥ प्रायः चाहरूयेन, एवं विधए उक्त जातीयेस, अतीन्द्रिये - एन्द्रियकमयोपशमाऽग्राह्य पू, मावेषु, यत्-यस्मात् कारणात् , छमस्थस्य अक्षीणघातिकर्मणः, अविसंवादि अप्रामाण्यशकादिविरहितम् , अन्यत्-शझातिरिक्तम् , मान-प्रमाणं, न चिश्यते । प्रतिभादिना योगिभिस्नग्रहणात प्रायोग्रहणम् । अत्र च यमप्यतीन्द्रियार्थे पूर्वमागमस्य प्रमाणान्तसनधिगनवस्तुप्रतिपादकन्वेनादेतपादन्य, तथाप्यये नदुपजीव्यप्रमाणप्रकृती हेतुबादत्वेऽपि न ध्यरस्थाऽनुपपतिः, आघदशा पेशयेष व्यवस्थाभिधानात् । अतो यदन्यत्रोक्तम् ' 'आगमचोपपत्तिश्च' इत्यादि, तनु नानेन मह विरुध्यते, अपूर्वन्य चारष्ट्रस्योपपद्यत इनि ध्येयम् ॥२३॥ .. . - -. . - - - - [प्रागम ही शुभ में सुखकारणता का बोधक है ] बापखणे कापिका में यह बताया गपाकि तमं स्वतन्त्र साधन म होने से उक्त अर्थ का साधक महीं हो सकता मत: उपत अर्थ की सिद्धि अन्य सामान से करती होगी, और यह अन्य साधन होगा 'आम'। कारिका का अस प्रकार है मागम में श्रद्धा रखने वाले पुण्यात्मा मनोविषों का मह कहना है कि पुण्यकर्म से हो मुख होता है और पापकर्म से ही कुछ होता है, यह बात निश्चित रूप से 'मागम प्रमाण हेही सिद्ध हो सकती है. किसी अन्य प्रमाण से कवापि नहीं सिद्ध हो सकती। केवल तक से स बात को सिद्धि को आशा करना व्यर्थ है क्योंकि तक कोई स्वतन्त्र प्रमाग महीं है, वह तो प्रमाणातर का उपोलक (पोषक) मात्र ३. भतः उपस बात की सिद्धि के लिये कोई प्रमाण होना आवश्यक और वह प्रमाण मागम होझो सकता है. अभ्य कुछ मही, उस तकका उसी आगम को परिचर्या में विनियोग हो सकता है || [प्रतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान प्रागम विना दुःशश्य ] इस ईसबों कारिका में उक्स विषय में एक मात्र आगम हो प्रमाण श्यों है । इस प्रश्न का उत्तर दिया गया है. जो इस प्रकार है उक्त विषम जैसे असोम्निय नियमान्य भयोपशम से अपान) पदार्थों के समय में छपस्थ. धातीसमों से मास पुरुष से अतिरिक्त ऐसा कोई प्रमाणही प्रस्तुत कर सकते, 'जो योगी के प्रालिम शाम से भिन्न हो तपा अप्रामाशा माधि से कवलितो , तिलिपे पल विषय में हिंसा रिण- भागमायोपत्ति सम्पूर्ण दृष्टिलक्षणम् । मतीन्द्रियानामर्धानां सावप्रतिपक्षये ॥
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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