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________________ स्या कटी-हिना विवेचन ] [२१ अन्नापाद्यविपर्ययप्रदर्शनेन शुद्धल्यमाहमुलम न चैन इयाने लोके मुम्बशाहस्गदर्शनान् । शुभात सौभयं तत: सिद्धमनोऽनाच्याप्यमान्यतः ॥२१॥ अतो पुनरि माला सामेन ये शुभादरेय सौमादि गम्गत नान्यतः क्वचित् ॥२२॥ न तद् आपाद्यमान, लोके जगति दृश्यते । कुतः ? इत्याह दुग्याबाहुल्गदर्शनात दुग्यम्य पूण्याऽयमानाधिकरणास्त्रदशनात् । इदमुपलमणं सखे यावत्यापन नित्याभावस्य । ननःशभात् = पुण्याच साम्यम् , अतः सारख्याद् अन्य दुई चापि, अतः = पुण्याद् अन्यतः = पापान , सिद्धम् ।।२।। नेदं स्वतन्त्रमाधनं, किन्न्यापातनः प्रमजापादन, नाच न माधकम् , इन्यन्येषा वाना-- न्तरमाइ-'अन्ये पुनरिति । अन्ये पुनः प्रामाः = आगमें श्रद्धावन्तः इदं वक्ष्यमाणं प्रवते । किम ! इत्याह-व-निश्चिनम् , शमायरेव = पुण्यादेरेव, माग्न्यादि फलमित्यागमेन गम्यते क्वचित् = कुत्रापि, अन्यतः = अभ्यंम मानेन न गम्यते ॥२२॥ होगा तो हिंसा श्रावि से निषप्त रहकर पुण्य कर्म करने वाले साधुपुरुषों को सख्या कम होने से पुण्यकर्म को अस्पता के कारण दुःख की उत्पत्ति अल्प होगी, फलत: ससार में मुख जनों की अपेक्षा दुःखी जनों की ससघा अल्प होना चाहिये, जब कि ऐसा नहीं है। इसलिये पाप कम से मुख की उत्पत्ति मानना यह तकसगत नहीं है। सक कारोर इस प्रकार तासप - मुगम यति पाप से उत्पन्न होगा तो उसे समी पापमा जीपों में रहना चाहिये । इसी प्रकार वि पुण्य से उत्पन्न होगा तो उसे भी सभी पुण्यकर्मो जीवों में रहना चाहिये । और उस स्थिति में म सो कोई पायो दुःखी हो सकेगा और न कोई पुष्पवान सुना हो सकेगा ॥२८॥ [लोक में हुःखबहुलता होने से पुण्य से सुख को सिति ] कीसवीं कारिका में पूर्वोक्त तक को विपरीतानुमानपवसामो साकर उस्ल को शुखता असायी गया है। कारिका का अधंस प्रकार है पूष फारका मे पाप कर्म को सुन का बत्पादक मानने पर ससार में अधिक मुख की उत्पत्ति का मापावान किया गया था, जिस से यह विपरीत अनुमान फलित होता है कि पापम मुसका उत्पादक नहीं है, क्योंकि संसार में मुख को अधिकता नहीं देखी जाती, प्रत्युत दुण को ही अधिकता बेश्रो जाता है। देखने में यही आता है कि दुका पुण्य का असमानाधिकरण होता है, पुण्यवान को नहीं होता। यह इस बात का उपसमग सुकभी पापकर्मी जीवों को नहीं होता। इसलिये यह सिद्ध क पुष्प गुम का मोर पुष्प मित्र पाप से मुख से भिन्न का जन्म होता है ।।२१।।
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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