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________________ [ शा०पा० समुदय००२० अत्र केचित्समाधानबार्तामाह-अत्रापि उक्त पूर्वपक्षेऽपि केचित सर्वशक्ति घादिनः आगमनिरपेचयुक्तिप्रणयिनः बते । किं व इल्वाह- मसीतिगर्भया-अनु भसकना, शुक्रस्याण, 'किल' इति सन्ये, एतत् प्राक् पर्यनुयुक्तम् अमसी प= निश्रयते ||१९|| मलम् - तयार्नाशुभात सोयं तङ्गतः । हवः पापकर्माणो विरलाः शुभकारिणः ।। २० ।। तन्यतमेवाह - ते वादिन आयेद अशुभान पापकर्मणः श्रयं न भवति । कः ? इत्याह-तापसनः = मुखभृगस्यप्रसङ्गात् इदमपि कुतः इत्याह- - पापकर्माणः - हिंसादिकारिणो बहवो व्याश्रादयः, शुभकारिणा: हिंसादिनिवृत्ताः माधुप्रभृतयः विरलाः= स्नोकाः । एवं 'खं यदि पापजन्यं स्थान यावत्पापकर्मनि स्थान दुखं यदि पुण्यजन्यं स्थात् पुण्यसमानाधिकरणं न स्थात्' इति तर्कश बोध्यम् ॥२०॥ , २०] } [ 'शुभकर्म से ही मुख' इसमें क्या प्रमाण ? ] प्रतिपक्षी स्वभाव का निराकरण करने के बाद यद्यपि प्रतिपक्षी आगम का हो गिराकरण करा उचित है, तथापि आगम का शरण लेने के लिये प्रसङ्ग एक नय विषयको चर्चा एक बी कारिका में की गयी है। जो इस प्रकार है एक अम्म दादी का यह प्रश्न है कि न्याय और लोक के अनुसार यह यद्यपि सिद्ध है कि हिसा अवि सिद्धित कमी से हो अशुभ आदि कान्होप सुख आदि का उदय शुभ- पुण्य कर्मों से ही होता है' इस में क्या प्रमाण है ? १८ इस १९ को कारिका में कुछ लोगों द्वारा उक्त प्रश्न के समाधान को चर्चा की गयी है। प्रकार है- जो बात अभय को साम्यता न दे कर केवल मुक्तियों का हो करते हैं. उन को ओर से उस प्रश्न के समाधान में यह कहा जाता है कि पाप कर्म से सुख नहीं होता, किन्तु पुण्य कर्म से ही सुख होता है इस बात का निश्रय अनुभव और तर्क से सम्पन्न होता है यह सत्य है इस में कोई संशय नहीं है ||१६|| [ पाप से सुख होने पर सुखीजनबहुलता की प्रापत्ति ] २० कारिका में दिवादियों का ही मत स्पष्ट किया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार हैपुतिमात्रवादी वन का यह कहना है कि पापकर्म से सुख का अन्य नहीं माना जा सकता. क्योंकि यदि पापकर्म से सुख का जन्म होगा तो ससार में हिंसा आदि पापकर्म करने वाले या आदि की अधिक होने से कम की अधिकता के कारण अधिक को उत्पति होगी। फल समार के दुःखों को अपेक्षा सुखी जयों की बहुलता होनी चाहिये, किन्तु ऐसा नहीं है, ससार में तो सुख प्राणियों को अपेक्षा दुःख प्राणी हो अधिक है। इसी प्रकार पुण्य कम से यदि दुख का जन्म
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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