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________________ स्या का दीका-हिन्दी विवेचन ] [" एवं प्रतिपक्षम्यभात्रो निराकृतः, ततः प्रतिपक्षागमनिराकरणे प्राप्तेऽप्यागमशरणार्थ प्रसङ्गादू वान्निामुत्थापयनिमलम-अन्यस्वाहेक सिऽपि हिंसादिभ्योऽशुभाषिके। शुभायरेष सीरूपादि केन मानेन गम्यते ! ॥ १८ ॥ अत्रापि प्रपने केचित् सर्वथा युक्तिवादिनः। प्रतीनिगर्भया युकन्या किल्लतदवसीयते ॥ १९॥ अन्यस्तु बादी आह, न्याय लोके च, हिंसादिम्प एवाशुभादिक सिद्धेऽपि, शुभा. दरेच-पुण्यस्मादरेन मास्यादि भवति न पापादः, इति केन मानन गम्यते ।।१८।। और अन्य ज्ञान की अपेक्षा न करने वाले मान का विषम होना (पन्यज्ञानाममोनमानवियर, किन्तु इन दामों ही का आपाधान नहीं हो RAI, क्योंकि ये दोनों प्रकार का साधारण कारणव में विद्यमान है, जसे, जिस वस्तुको एक मनुष्य जित कार्यका कारण समझता है. सभी मनुष्य उस वस्तु को उस कार्य का कारण मानते है, एवं किसी वस्तु को किसी कार्य के कारणरूम में जानने के लिये किसी अन्यज्ञान को अपेक्षा नहीं होती। (कारणता कार्यसापेक्ष होती है) पूरे प्रश्न का अभिप्राय यह है कि 'कारणव' कायनिरपेक्ष न होकर कार्यसापेक्ष होता है, किन्तु . काय विशेष के बिना भी यदि सामान्य कारणत्व का निवधन किसी प्रकार हो सके तो उस में भी उक्त घोमों प्रकार का साधार०५ विद्यमान है. हो, सरकार्यकारणव के मन में तस्कार्यज्ञान की अपेक्षा होने से उस में वूमरे साधारणपकी उपपत्ति में बाधा आपाततः अवश्य प्रोत होती है, परन्तु विचार करने पर वह बाधा भी नहीं हो सकती मोंकि काय ताकार्यकारणत्व का स्यज्ञक है. और पलक में घटित वस्तु के विषय में दूमरे प्रकार का साधारण्य सामान्यतः अन्यपहानषीमग्रहविषयमरूप, होकर व्ययकान्यानाहानबीनमानविषयस्वरूप होता है, और यह ध्यासापेक्ष वस्तु में अक्षण होता है। शंका-कारणत्व पदि परापेक्ष होगा तो अलोक-अवास्तविक हो जाएगा. स्पोकि की परापेक्ष होता है वह असोक होता है। अत: से स्फटिकान में प्रतीत होनेवाली रक्तता कपामुपके सन्निधाम को सापेक्ष होने से अलोक होती है, उसी प्रकार कायंसापेक्ष होने से कारणव मो भलोक हो जायमा"यह का उचित नही कही जा सकती, क्योंकि 'यो परापेक्ष होता है बसलीक होता है. यह नियम मही है. यह तथ्य व्याख्याकारने 'भावारणम्म' नामक ग्रन्थ में से होम्सि'इस गाथा वारा अभिहित किया है। गापा का अयं इस प्रकार है-परापेक्ष वस्तु में मजाक सापेज होती है. अलोक नहीं होती, प्रामाणिक वस्तुभों में मह वैचित्र्य रेखा जाता है जिसम में कोई बस्तु किप्तो पाक की अपेक्षा किये बिमा हो अभियरत होती है जैसे कपूर का गम्य, मोर कोई वस्तु ग्यश्क में समिधाम में ही अभिव्यक्त होती है जैसे धाराव=मिट्टो के पके नये वर्तन-फा पन्ध । इस विषय की अधिक जागनारी उपतगाषा के विवरण से प्राप्तव्य है ।।१७॥
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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