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[ शा या समुच्चय-स्त २-पो०१७
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कायमस्वभाव वन्यटिमत्यादेव नास्ति । न च पगपेक्षवादलीत्यापतिः, तथा नियमाऽभावात् , अभ्यधि-महि च भाषारहस्पे-॥ श्लिो०-३०]
ने होमि परायेक्षा पंजपमुहसिगा ति ण य तुम्छा । घिमिणं पचिसं सगनकरपूरगंधाणं ॥ इति, अधिक ताण दिवसेएन ।
- ( स्वभाव के अन्योन्य संक्रम को प्रापत्ति) वो कारिका में पूर्व कारिका में उद्भावित प्रथ का निकष सताते हुये किसी वस्तु के अस्थाभाविक हो उस का स्वभाव बसाने का निराकरण किया गया है। कारिकाका अये इस प्रकार है,
भाप में पाषाणस्वभाव का पंचामण होने पर आप अचम्म हो जायेंगे और पाषाण में अन्य के स्वभावका संक्रमण होने पर पाषाण बुद्धिमान हो जायगा-यक्तिगत होने से पहबार यदि RIARI जाम्रगी तो जिशून्य व्यक्ति से हमारा विवाद हो पा रह जायगा ? अति उस स्थिति में आप मे कोई विवाद करना सम्भव ही न होगा । MA: अन्ततो गत्वा यही कहना होगा कि जब रोमात्रोद्रम आमिपातकाय की उपपत्ति के लिये हिम का सन्निधान अनिवार्य है तो अवश्यसानियतपूवती शोमें से ही उस कार्य का जनक है और अग्नि अवश्याप्त नियतबासी से निहाने के कारण वन काम के प्रति अन्ययासित होने से उक्त कार्य का जनक नहीं। अत: जातकार्यजनके आधार पर जस में रिपस्वभाव को कल्पना नहीं हो पकली । यहाँ दृष्टि प्रकृत विषय हिंसा atia के अधमाकमनकरभाव और अहिंसा आदि के धाविजमकत्यस्वभाव के विषय में भी उपादेय है।
(सकार्यसाधारण फारए.ता की प्रापत्ति का निवारण) जमतोट अपनाने पर यह कं उठ सकता है कि- कार स्व यदि स्वाभारिक होगा, नसे. साधारण होना चाहिये अर्थात जो वस्तु किसी एक कार्य का कारण है जमे सम वस्तु का कारण होना चाहिये पोंकि मिस सातु का जो स्वमाय होता है वह किमी के प्रति उत्त का स्वभाव हो और कली के प्रति बस का स्वभाव न हो ऐसा नहीं होता किन्तु यह सभी के प्रति इस का स्वभाव होता है। जसे कोई वस्तु यदि नौलस्वभाव है तो वह पृष्ठ लोगों के प्रति नोल और कुछ लोगों के प्रति अनीत न होकर सम के प्रति नी ही होती है उसी प्रकार यो वस्तु कार मस्वभाव होगी ससे किसो एक हो कार्य का कारण होकर मक कार्यों का कारण होना कायसंगत है- किन्तु यह तक उचित नहीं है. क्योंकि कारणस्य नौलाव के समान किसी बात का निरपेक्ष मावन होकर कापसापेक्षस्वभाव है अर्थात् समायत. कारण किसी वस्तु का स्वभाव नहीं होता अपि तु ततःकायकारणत्व वस्तु का स्वभाव होता है, और बह सवसाधारण होता ही है, क्योंकि जो वस्तु किसी एक मनुष्य की होम से FRस कायको कारण होती है वह सभी को दृष्टि से उस कार्य को कारण होता है।
आहाय यह है कि कारणष में जिस साधारण्य का आपाम वाचो को करना उसका वो प्रकार हो सकता है। सब ममुगयों द्वारा कारण कशायमाहोमामा कारमरपेन शायमानचं]
१-ते मम्ति परापेथा व्याकमुखवशिन इति न च तुम्का । समिदषिऽयं शरायस्गिन्धयोः ।।