________________
१२१ ]
[शा. वा समुचय स्त-३ नोक-५२-५२
परः शकते
मूलम-नामू मूर्तता पाति मूर्स नापात्पमूर्तताम् ।
__यता बन्धावती न्यायावा:मनोऽसंगतं तया ॥३१॥ न अमूल रूपादिसंनिवेशरहितम् , मुर्तता रूपादिमत्यरिणनिम् , याति-आश्रयति, आकाशादी तथादर्शनात् । तथा मूर्तरूपादिभव , अमूर्तनां अमूर्तपरिणतिम् न आयाप्ति परमापयादिषु तत्सद्भावाऽसिद्धः, यतः यस्मादेवं न स्वरूपविपर्ययो भवति, अता:-अस्मात् , न्यायात-नियमान् मयाकर्मप्रकृत्या आत्मनो बन्धाधसंगतम् ॥४१॥
अनोत्तरम्मूलम्-वहस्पाविसविस्या न गायेवेतपयुक्तिमत् ।
अन्योन्यव्याप्तिमा यमिति पन्धावि संगतम् ॥४२॥ देहे स्पर्शः काटकादिस्पर्शः उपघासहेतूपमिपातोपलमणमेनन , आदिनाऽनुग्रह-हेतूप. निपातसंप्रदा नरसंदिपा ताजनितसुखदुखानुभून्या, 'न पात्रोत्र अमूर्त मूर्तताम्' इति प्राक्तपति हो सकती है । यदि उस का कोई एक हो रूप माना जाता तब वह अनेक कार्यों को जन्नी न होतो । कर्मप्रकृति और मात्मा का एक दूसरे में अनुप्रवेश होने के कारण कर्मप्रकृति के द्वारा मात्मा का बंधन मामा के सस्वरूप का तिरोधान भी हो सकता है, क्योंकि कर्म में बन्धन
स्मिक परिणाम और भात्मा में बढस्वभावात्मक परिणाम होता है। प्रतः फर्म को मारमा का धन और आत्मा को कर्म का बध्य होने में कोई बाधा नहीं हो सकती, इसलिये न मत में प्रारमा में संसार और मोक्ष के प्रभाव का प्रसग महीं हो सकता ॥४॥
[ मूर्त और प्रमूर्त के अन्योन्य अपरिवर्सन को प्राशंका ] ४१ वी कारिका में कर्म और प्रात्मा के जन सम्मत पम्योन्पानुप्रवेश सम्बन्ध में सांस्यवेत्तानों की यह शंका प्रशित की गई है कि
जो पवार्य प्रमूर्त होता है, जिसमें रूप-स्पर्शादि का अस्तित्व नहीं होता वह पदार्थ मूस नहीं हो सकता । रूप स्पर्श प्रादि के माधयरूप में उसका परिणाम नहीं हो सकता जैसा कि प्राकाशावि में पेशा जाता है। यह सर्वमान्य है कि प्राकाश मावि प्रमूर्त रूपस्पर्शाविहीनपदार्थ कमी भी मूतं रूपस्पादि से युक्त नहीं होता । इसी प्रकार जो पदार्थ मूर्त होता है.रूपस्पर्शावि से युक्त होता है उसका कमी प्रमूर्त परिणाम नहीं होता जैसे मृत परमाणु प्रावि में अमूर्त परिणाम कमी नहीं होता । इस प्रकार अब मह सिद्ध है कि वस्तु के स्वरूप में बंपरीत्य नहीं होता तब पात्मा के स्वरूप में भी बंपरीत्प की संभावना कैसे हो सकती है ? पतः कर्मप्रकृति से प्रात्मा का बंधनादि होना पर्सगत है ॥४१॥
[ मूर्त-प्रमूर्त परिवर्तन की उपपत्ति ] १२ वी कारिका में साक्ष्य को पूर्वोक्त बांका का उत्तर दिया गया है जो इस प्रकार है-ोह में उपचातक कटकमावि का स्पर्श होने पर पुःखकी एवं मनुपह हेतुभूत माला परवा मावि के स्पर्श से सुपाको मनुभूति होती है, जिससे प्रमूतं पारमा का मूल होमा सिश है । प्रतः यह कथन कि-'अमूतं