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________________ [साम्त्रवातोनमुरूपय स्त०२-खो० ९.१० बिलहिंसाधनुष्टानान प्राप्ति: क्लिष्टस्य फर्मणः । यथाऽपश्यभुजी व्याक्लिष्टस्य विषयपान ॥९॥ एतदेव भावयन्नाह-क्लिष्टात गोशमा ज्यान हिंसाधनुष्टानान् क्लिष्टम्यशानाधरणादिप्रकृतिस्थ, कोण मानिर्भवति, यथा अपथ्यभुजः निरुद्धमोजिनी व्याधे-रोगस्य प्राप्तिः । तथा विपर्ययात-अक्लिष्याहिमाद्यनुष्ठानात् अक्लिष्टस्य मानवेदनीयादिशुभप्रकृतिकस्य कर्मणः, प्रामिभयप्ति, यशापयमोजिमो व्याधिविगमान सुखस्य प्रामिति ॥९॥ अागमा नियममुक्त्वा स्वभावाइ त व्यवस्थायितमाहमलम- स्वभाव एष जीपस्य गाथा परिणामभाक । बध्यते पुण्यपापाभ्यां माध्यस्थ्याग्नु विमुच्यते ॥१॥ एप जीवस्य-चैतमस्य स्वभावो य तथापरिणाममाफ ,हिमादिपरिणतः पुण्यपापाभ्यां वश्यते, माध्यस्थ्यात्तुब राम्यानु विमुच्यतेशीणकर्मा भवति । इत्थं चैतदयगमगीकतव्यम् , अन्यथा 'दण्डादरेय घटजनकत्वं, न बेमादेः' इति कृतः । इति प्रश्न किमुत्तरमभिघानीयमायुष्मता न १ प्रश्नस्य वानुपपत्तिः, 'पर्वते वक्षः कृतः । इत्यनेध वापर हेतु जिज्ञासपा नदपपत्तः । न चैवे स्वभावेऽपि वरनापनिः, तत्र व्यापातन शङ्काया एवानुदयादिति ॥१०॥ हिसा आमि निषिद्ध कम पाप . और उसके प्रारा दुःख पावि के कारण हैं. एवं अहिंसा आदि विहित कम पप्य के और उसके द्वारा सुख आदि के कारण हैं। ___खों कारिका में उक्त विषम कोही उदाहरण पारा स्पष्ट किया गया है। कारिका का अचं इस प्रकार है सिष्ट भाचरण पानी संशा पूर्ण हिसा आदि कार्यो के मरने से बिलाष्टकर्म अर्थात नानाविका नावरण करने वाले कम की रामबहोती है, यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार विश्व भोमन करनेवाले रोगी को रोग की प्राप्ति हती है। इसी प्रकार अविलय-किलविपरीत प्रापरण से पानी सवलशाहीन हिसा आदि कार्यो के करने सातवेदोय सुषोत्पावक मा. शुभपरिणामी म की प्राप्ति होती ही यह भी ठीक उसी प्रकार से पम्य मोजो मनुष्य को रोग की निवृति होम से सुन की प्राप्ति होती है | (बन्ध और मोक्ष का कारण जौवस्वभाव है) ___ हिंसा बाधिका पाप आदि के साथ एवं अहसा आदि का पुण्य भाविक माय हेतु हेतुमानाब का नियामक आगम हबहकाने कमा सभा भी उसका नियामक पह बात दसबी कारिका में बतायी गयी है । कारिका का अर्थ इस प्रकार है
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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