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शामा समुच्चय-स्तम्-श्लो०७
__ अथ तात्पर्यरूपाफाझा हेतुप्रविष्टनि न ब्याभधारः । न र कर्मवादी घटादसमर्गासिद्धाचपि कर्मवादी निरूपितत्त्वसम्बन्धेन घटादिकप्रकारकपोधीन जान इति याश्य, 'कर्मत्वादिकं घटादिमाव , घटाकाक्षादिमत्पदस्मास्तित्वात् ,' इत्यनुमानस्यापि सम्भवात् । इनि चत न अनुमानाद् नियतपोधानुपपत्तेः । 'प्रदान्मकविलक्षणानुमिती व्युत्पञ्चेपि तन्प्रत्यास्त्र दोप' इति वेत् १, न व्युत्पः पदम्प शम्दहेतुत्वगत्वात । से सिजसाचन दोष हो जायगा, और यह सर्वसम्मत है कि भनुमान प्रमाण से सिद्ध का माधन नहीं होता, क्योंकि सिखि से अनुमति का प्रतिबन्ध हो जाता है।
आकांक्षा को को हेतु का पटक बनाया गया है. यह मी ठीक नहीं है कि हेतु का पटक होने पर उसकेनाम की अपेक्षा होगा. जब कि माकमा 'समभियानुसबाश्यासर्गत पद से स्मारित पवावं की जिला कप होने से यह स्वरूदेव-सम् होकर हो शायनाम को सम्पाधिका होती है. लात हो कर मही होतो।
[पोरयता मोर ग्रासप्ति से घरित हेतु भी असमर्थ] 'पाक्षिाविमत्यवस्मारितस्व' हेतु में आदि पर से योग्यता माहित आसक्ति भी विवक्षित है, सोनियोग्य और वासत्तिहीम पवों से स्मारित पयों में वाक्य से परस्पर समन्धका बोध नहीं होता । परंतु योग्यता सहित प्रासति से धरित मी हेतु उक्त अनुमानाकार को सम्पन्न करने में मसमर्थ है, क्योंकि यह राजा का पुत्र पल रहा है मागं में से ममुधों को हटाया जाय' इस अर्थ के बोषक 'अयमेनि पुत्रो राक्षा पुषयोऽपसाताम्' इस चाय के घटक 'रामः पुरुषः स भाग में भी योग्यता सहित आसक्ति विद्यमान है किन्तु इस माग से स्मारित अर्षों में समा का प्रनिमत सम्पत्य मही है क्योंकि 'राम'का सम्बन्ध 'पुत्रः' के साप विवक्षित हैन कि 'पुरुष' के साथ 1 अत: कक्षायोग्यतामातातिमत्त्वस्मारितत्व हेतु ४ा बामय रामः पुरुष स भाग से स्मारित अर्थों में बरता के सभिमत परस्परसम्बाबल्य साध्य का म्पभिवारी है, और व्यभिवारी हेतु साध्य का अनुमापः क नहीं होता।
योग्यताको जैतुषक्षक मानने पर सिरसायन दोष दिया गया है। उस का परिहार अनुमानाकार को ववल वेने से हो सकता है, से अनुमान का आकार यदि यह कर दिया जाय कि "अमुक अमुक पर मारित पार्यों के विवक्षित सम्बन्धको प्रमा से प्रयुक्त है, पयोंकि बाकांक्षा योग्यता और साप्तत्ति से युक्त पर है. जैसे 'दोन गामयाज' इस वाक्य के घटक पक्ष' तो इस अनुमान के पूर्व हेतुपटक योग्यता का निश्चय होने पर भी सिससाधन नहीं होगा क्योंकि इस पे अनुमान में पार्यो का परस्पर सम्बाध रूप योग्यता साध्य नही हैं किन्तु शासम्बन्ध प्रमापूर्वकस्वा साध्य है, और बहसमत अनुमान से पूर्व पक्ष में निति नहीं है -किरतु अनुमानाकार के इस परिवर्तन से भी कोई काम नहीं हैपयोंकि उस 'रामः पुरुषः' इस माग में व्यभिचार बोच अबारित है। रहता है।
[तात्पर्य रुप आकांक्षा का हेतु में प्रवेश निरर्थक है) यपि यह परिहार किया जाय कि “सारपयं बप आकाक्षा को हेतु का घटक बनाने पर उस पसमिधार नहीं होगा, क्योंकि 'अपति पुत्रो रामः पुरषोऽपसायतरम' इस वास्य के रासः पुरुषः' इस