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स्य' का टीका-हिन्दी विवेचन ]
स्वस्य पूर्व दुहत्त्वात् । अत एक योग्यताया हेतुप्रवेशेऽपि न निर्वाहः, एकपदार्थेऽपरपदार्थवाचरूपायास्तस्याः प्रागनिश्चयात् , निधये का सिद्भसाधनात् । आकाङनापि ममाभिव्याहतपदस्मारितजिज्ञामारूपा म्वरूपमत्येव हेतु, न तु ज्ञाता । योग्यतामहिनाऽऽमतिर्गप न नियामिका, 'अपमति पुत्री गनः पुन्धोपसायताम्' इत्यत्र मात्रः पुरुषः' इति भाग व्यभिचारान् । एलेन-गनानि पदानि सानपघवषयरमान्तिपदार्थमसर्मप्रमापू काणि, आकाशादिमत्पदन्वान , इत्यनुमानशरीरे उक्तयोग्यताया हेतुविशगोऽपि न सिमाधनम्-इत्युक्तायपि न निस्तारः।
[शब्द प्रमाण स्वतन्त्र नहीं है-वावस्थल-पूर्वपक्ष ] वैशेरिक आदि कतिरप दर्शन शव को अनुमान से भिन्न प्रमाण और शास्त्रज्ञान को अनुमति से मित्र प्रमाण नहीं मानसे । उनका कहना कि वाय का श्रवण होने पर जब वाक्य घटक पदों से नमत अर्ष को समति हो जाती है तब उन अर्थों में यात्रा के मभिमत परस्परसम्बग्य का अनुमान हो जाता है। अनुमान का आकार इस प्रकार होता है-"अमुक अमुक पदार्थ बक्ता के अभिमत परस्पर सम्माध के आभय है-कमोंकि आकाक्षा आदि से युमन पत्रों से स्मारित है-जो पदार्थ आकांक्षा आदि से युक्त पों से स्मारित होते हैं वे वरता के अभिमत परस्पर सम्बन्ध के आश्रय होते हैं, मे पण्डेन गामभ्याज' इस वामय के पव. तृतीमायिपित, गो पब. बिलीया विभक्ति. अभ्याम सोपसर्ग वान और लोट प्रत्यय, इन पदों से मारक adकरमता, फतः,
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ति है कि करता के साथ वा का और ममता के साथ गोका निवस्वतम्बन्ध, एव अपसारण के साथ कर. गाना-कर्मता का निरूपार सम्बत्य तथा अपसारण के साथ कृति का सामस्व सम्बम्ब पास को अभिमत है, और वे वे पदार्थ जम सम्बन्धों के प्राभय है।
[अनुमाम से शचप्रमाण की निरर्थकता नहीं हो सकती-उत्तरपक्ष] जाम को मात्र प्रमाण मानने वाले मर्माधियों का कहना है कि-उत अनुमामाहार से बतान को गतार्थ (नियमोजना नहीं किया जा सकता पोंकि अनामत पुरुष से उवर पोंजारा स्मारित प्रामा में परस्पर सम्बन्ध न होने से आकांक्षाविमस्मारितत्व हेतु में जबत साध्य कामयभिचार होने से कारण अनुमान का उक्त आकार सम्भव ही नहीं है । हेतुघटक पत्र में प्राप्तीक्तस्व विशेषण वेने से भी इस घोष का मिकरण नहीं किया जा सकता, क्योकि वाद प्रान के पूर्वबायघटक पक्षों में आरोक्तस्त्र का निश्चय नहीं हो सकता. कारण कि शासन का प्रवृति आदि के साथ संबाब सोने पर हो उसके प्रयोजक वाक्य में प्राप्तीक्तत्व को जामकारी हो सकती है. उससे पूर्व नहीं होती।
हेतु के शरीर में योग्यमा का प्रवेश कर के भी इस दोष से मुक्ति नहीं पायी जा सकती, क्योंकि एक पदार्थ में अगर पदार्थ का समय हो योग्यता है जो शवमान से ही महील हो सबने के कारण उस से पूर्व निश्चित नहीं हो सकती, जबकि उस के हेतघटक होने पर शादमानात्मक अनुमिति के पूर उस का निश्चय आवश्यक होगा और घाव कमा से अतिरिक्त किसी अन्य साश्रम से शाबशाम के वर्ष धोग्यता का मिश्चम हो भी नाबमा नो योग्यताटित हेतु से अनुमान हो सकेगा. पोंकि शम स्थिति में अनुमान से पेविताय एक पार्थ में अपर पार्थ के सम्मम का निश्चय पहले ही हो जाने