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[ शापा समुच्चय न. २-इलो
अन्तु महंशपरीक्षेत्र, इत्यत आह
अपरीक्षापि मो युक्ता गुणदोषाऽविकतः ।
महत्संकटमायातमाशा न्यायशधिनः ॥ ७ ॥
अपरीक्षापिअविचारयेऽपिनाव, युक्ता । कम्मत ? इत्या-गुणादापा. विधेकतानि कम्पनलि-मिसिप्रयोजकानिश्श्यात । तम्मान परीक्षा परीझामयाऽयोगात , न्यायपाविना ताधिकस्य महत संकटमापानमित्याशहक । पतन 'वप्रधानन्यात शब्दम्याऽग्रामण्यम्' इत्याप निरस्तम , गुणबदफाकन्येन तस्य प्रामाण्यव्यवग्थिनेः 1 अनपाय अनुमानादस्य विशेषः, शानदनमायां वनपथार्थवाश्यार्थज्ञानम्य गुणाधात . इन गुणवक्तअयूक्तशब्दप्रभवन्वादेय शाब्दमनुमानमामाद् विशिष्पने' इति वदतां मम्मनितीक नामाशयः |
अत्रेदमबंधयम्-गते पदार्थास्तापर्यविपर्यामधःशाना, आकाक्षादिमत्पदम्मातिस्वात, 'दण्डेन गामभ्याज' इति यदस्मान" एपिथगामि , अनासोक्तपरस्मारिते घ्यभिचागत् । आमाक्तत्वेन विशेषणीयो हेतुगिन' चेत् ? न, आम
[ परीक्षा-परीक्षा उभय के प्रयोग से संकट] पूर्व कारिका में कहा गया है कि सम्मकस्म के प्रतिवन्धक कमी के क्षयोपशम से समय की मिति म मामले पर पस्तुत की परीक्षा न हो सकेगी, उस पर यह कहा जा सकता है 1क 'परीक्षा म हो. पया हामि है-प्रस्तुत Bाय कारिका में इसो कयम का उसर दिया गप! ।।।
कारिका का अर्थ इस प्रकार है-'वस्तस्वकी पौक्षा न हो तो मरे, कोई हानि महीं हैं:कहना ठीक नहीं है क्योंकि वस्तुरस्त्र की परीक्षा न हो सको पर गुणदोष के अधिक से अर्थात् निधि प्रत्रात्त और मिति के प्रयोजक का निश्चय न हो सकने से मनुष्य को प्रति निवृत्ति की उपपत्ति न हो मकेगी । परिणाम यह होगा कि मानावरणीय कर्म के प्रायोपशाम से संमाय को निमित मामले पर समाप को निति होने से वस्तुनाव की परीक्षा न हो सकेगी। स एवं प्रति निवृत्ति के प्रधाअफ का नियम हो सकमे के भय से ग्रस्तुतस्य की परीक्षा भी स्वीकार्य न हो सकेगो, तर तो ताकि को महान संकट उपस्थित हो जायगा।
पूसरी करिका में जो या कहा गया था कि-अधिति आदि हेतुओं से पापका और विरति आदि हेतुओं से पुष्प का उयम होता है-इस नियम में आगम प्रमाण है। उसके विषय मह कहा जा सकता है कि "मागम तो पारदात्मक हैं और शव क्षता के प्राधीन होता है अत: यता के दोष से कार में दोष सम्भव होने से शब्दको प्रमाण नहीं माना जा सकता'-किन्तु पहकन बधित नहीं है. क्योंकियोष एस्ता बाद अममाण होने पर भी गुणवान वसा के शमन में प्रामा मामले में कोई बाधा नहीं हो समाती । “अनुमान से काम का यही शिष्टम है कि आप से होने वाली प्रम में वक्ता का वाक्याथविषयकममार्थशान रूप गुण कारण होता है । गुणवान् बपता के कार से उत्पन्न होने के कारण ही र. शाम मनुमिति से विलक्षण होता है सम्मति प्राय के टीकाकार का भी यहो आपाय है।