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________________ स्या कटीक और हिन्दी विवेचन ] किन, एवं प्रत्यक्षादिना मिदायपि विन कहा शादरोधानुदयः स्यात् । न च पाताया लिङ्गभेदभिषन्येम तसविझकामिनी नहेतुन्वादेव नानुपसिरिति वाच्यं, तथाप्यन्धि सान्वयवारणाय लिगकतदनुमिनी ननिक्षाकनदनुमित्यमावस्य हेतुत्वापेक्षया घटपदजन्यशाम्दोधे घटपदजन्यशान्दबोधस्यैत्र प्रतिबन्धकवे लाघवाद् अतिरिक्तशामिद्धेः। भाग का राजकीय पुरुष' अर्थ में तात्पर्य न होने से उस माग के अप में 'आकासला. योग्यता, आमति तथा तात्पयंपुषतपरस्मासिस्व' सेतु का अभाव है, अत: उक्त भाग के अर्थ में नास्पविषयमिय:संसर्ग रूप साध्य का अभाव होने पर मो हेनु में मायावृत्तिस्वरूप व्यभिचारको सम्भावना नहीं है। इस पर वांका हो सकती है कि उक्त मानुमान से कर्मस्व आदि में घट आदि का संसर्ग सिब होने पर भी कामेस्व आदि में निरुपितत्व सम्बम्म से घटाविप्रकारक बोध को उपपत्ति उक्त अनुमान से नहीं हो सकती। अत. उप्त बोषनिहाशावको तापावोषके प्रति कारण मानना आवश्यक होने है शश्व को स्वतन्त्र प्रमाण समा जाम को विपक्षण प्रमा मानना आवश्यक है।-किन्तु यह चाकु उचित नहीं है, क्योंकि 'घनाकामाविमापदम्मारित हैन से 'कमेवादिकं घटा विमत इस आकार का कर्मस्व प्राधि में निरूपितर सम्बन्ध से घटावितकारक अनुमिति का पो जन्म हो सकता है, अतः पाविज्ञान को अनुमिति से विलक्षण प्रमा और शाम को अमुमान भिन्न प्रमाण मानसे की आवश्यकता नहीं है। (अनुमान से मारवषत नियत बोध को अनुपपत्ति) इस परिहार के विरुद्ध शम्बप्रमाणवादियों का कहना है कि शम्न श्रवण के अनन्तर शव से अपस्थापित अर्थ काही बोथ होता है, उप्स मोथ में वापसे अनुपस्थापित अर्थ का भान नहीं होता, किन्तु उस गेधको परि अनुमितिरूप माना जायगा तो उस में पशमशविषयोमूत समानुपस्थित मर्थ का मो भान होने लगेगा, अत: शा से नियतयोष की हो उपपत्ति के लिये उसे अनुमान के भित्र प्रमाण मानना आवश्यक है।-भस्य अनुमिति में नहीं किन्तु शाग्दशानात्मक अनुमिति में प्युत्पत्ति पदनिष्ठतासमान से जय पदार्थ की उपस्थिति-को कारण मानने से यह दोष नहीं होगा'-यह कपात ठीक नहीं है क्योंकि पुस्पति के स्वरूप में पशिष्ठ शानशानकारणता प्रविध रहती है। अतः शास्वशान में व्युत्पत्ति को प्रयोजक तभी मामा प्रा सकता है नापमानरूप विलक्षण प्रमा के प्रति शव को विलक्षण प्रमाण के रूप में कारण मामा जाप । साधाय यह है कि 'अमुक पर अमुक अप के शावयाय का बनकहो, या अमुक अर्थ अनुरूपवजय शारदोध का विषय हो' इस प्रकार के संकेत का नाम या उस से होने वाली पायपस्थिति हो व्युत्पत्ति है। इसलिये जब उसे शायज्ञान का प्रयोजक माना जाएगा तब शाग्यशान को नुमिति भागने का अवारही मही उपस्थित हो सकता क्यो कि शाम्दज्ञान को विलक्षण प्रमा मानने पर हो सयुत्पत्ति बन सकती है। (अनुमितिपक्ष में शाम्बयोधानुक्य की प्रापत्ति) पावशाम को मनुमिति मानने में एक और भी बाधा है, वह यह कि प्रत्यक्ष प्रावि प्रमाणे हे पवायो मियसंसर्ग का निश्चय स्वरूपमित रहने पर भी पाक में रख पसंमर्गनाम की उत्पति होता है, उसके लिये पदाथसंसग वामशान की अपेक्षित नहीं होती, किन्तु परि
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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