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________________ [ शावा. समुच्चय स्त३ रखोर ब्रामण्डनाशक्तयापि नेश्वरमिद्भिः, प्रलगाऽनभ्युपगमान , अहोरात्रम्यागत्रपूर्वकन्यच्या पत्त्यात् । न च वर्षादिनत्वेनाऽव्यवहितवर्षादिनपूर्व कन्वे माध्ये राशिविशेषावछिन्नरविपूर्वकत्ववाऽध्यवहितममारकत्वमुपाधिः, गशिविशेष वादिनस्य हेनुत्त्वेन तत्रानुकूलन पोपायः साध्यव्यापकन्वग्रहेऽप्यनुकूलतको मावेन प्रकन उपाधसमर्थयान, कालन्यम्प माग्यव्याप्यत्वाचन । कर्मणां विपक्षविषाकनया युगपद् निगेधाज्मभयान , सुगुप्तौ कतिपयाऽदृष्ट्रनिरोधस्य दर्शनावरणरूपाऽप्रमामध्यांदवीपपनवेलचनाष्टान्तरपतिगेघदर्शनात , प्रलय न कथं ताशाहएं यिनाऽनिरोधः स्यात् ? अन्यथा न्यना यागिद्वो मोक्षः इति किं नमाचर्यादिवले. शानुपरेन ? इत्यन्यत्र वितरः । म कार्य को उत्पन्न करता है। जैसे लोरखण्ड से असम्बर भी प्रयकान्तमणि (लोहनाबक) लोहखण्ड में प्राकर्षण उत्पन्न करता है। अत: कार्य में उत्पत्ति देश से सम्बद्ध हो कारण कार्यका उत्पावक होता है इस नियम के सावधिक न होने के कारण ब्रह्माण से प्रसम्बाह भी जीव का प्रष्ट ब्रह्माण्ड का धारक हो सकता है। इस विषय का विस्तृत विचार अन्यान्सर में टटव्य है। यह भी ज्ञातव्य है कि प्रयत्न कहीं भी स्वयं पजा का प्रतिबन्धक महीं बनता। फिन्त विलक्षण प्रयत्न के रूप में पतन के प्रतिबन्धक संयोग विशेष को ही उत्पन्न करता है । पतन का प्रतिबन्ध तो उस संयोग से ही होता है। जैसे आकाश में उड़ते हार पक्षी के शरीर के पतन का प्रतियध पक्षी शरीर के साथ पक्षोको प्रास्मा के संयोग से होता है और वह संयोग पक्षी के प्रयश्न से उत्पन्न होता है। सभी प्रपन पतन के प्रतिबन्धक संयोग को नहीं उत्पन्न करते किन्तु विलक्षण प्रयत्नही उत्पन्न करता है। अन्यथा सोषित प्राणी का वृक्ष ममन पर्वत मादि मे कमी मी पतन न होता 1 ईश्वर का प्रपन एक हो होता है । अतः उस में वैज्ञात्य की कल्पना नहीं हो सकती। मत एव उप्स ले पतन के प्रतिबन्धक संप्रोग की उत्पत्ति ममत्र नहीं हो सकती। इसलिये ईश्वर प्रयत्न की बमामा का धारक मानना न्यायस मत नहीं हो सकता। [प्रलय के अस्वीकार से इश्वरसिद्धि निरसन] बयाण-नाशक के रूप में भी ईश्वर की आनुमानिक मिति महीं हो सकती क्योंकि प्रमाग का मावा प्रलमहीम म्यता पर मिमर है और प्रालय अप्रामाणिक होने से असिव है। अत: आश्रयाशिव पोष केकारण ब्रह्माण्वनामा को पक्ष बनाकर को अनुमान नहीं किया जा सकता । यवि या कहा आय कि-बागकामाश मनुमान से सिद्ध है। जैसे ब्रह्मा नपरम् । नासप्रतियोगी) अन्यभाबस्पात घटा वियत्।' यह अनुमान ब्रह्माणनाश में प्रमाण है। प्रतः ब्रह्माण्डनावापक्षक अनुमान में मात्रयासिद्धि नहीं हो सकती".तो यह ठीक नहीं है क्योंकि ब्रह्माण्ड में नाशप्रतियोगीरबके सवत मनुमान का पायक मनुमान विद्यमान है जैसे विवादास्पद महोरात्र अब्यवहित प्रहोरात्र पूर्वक है। क्योंकि ओ मो महोरात्र होता है वह सब महोरात्रपूर्वक होता है। यदि ब्रह्माश का माण माना जायगा तो पिम बह्माण्ड में होनेवाले प्रथम महोरात्र में प्रव्यवहित अहोरात्र पूर्वकस्व न होने से सभी महोरात्र महोरात्रपूर्वक होते है इस भ्याप्ति का मन हो जायगा । अतः किसी भी महोरात्र को प्रथम
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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