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________________ [ शा या ममुरुचय स्म० ३- दो। नाभाचे तथात्वात् । बेगाऽप्रयुक्तन्यम्यापि विशेषणचे मन्त्रविशेषप्रयुक्तगोलकपतनामावे तथावाद । अष्टप्रयुक्तत्वस्यापि विशेषणस्त्रं च स्वरूपामिद्धिः, ब्रह्माए इधृतरप्यदएप्रयुस्तत्वात् । नयनम् -- [ोग :-१.] के गुरम से भी जन्म होने के कारण पत्तनरूव हो जाता है। इसलिये वन्तमयुक्तमानकल के पतमाभा में गुरुस्वेतरपसानहेरबभावप्रयुक्तस्य म होने से पाम्रफल में व्यमिनार का प्रदर्शन न्यायसङ्गत है। फावत: उपलव्याप्तिान बन सकने के कारण पति से ईश्वशनुमान प्रशश्य है उतन्यभिचार का पारण करने के लिये यदि पुरुस्वमत पतनाभावरूप धति में प्रतिबन्धकामाव से इतर जो पतन की सामग्री, तत्कालीन विशेषण वेकर इस प्रकार व्याप्त बनायी जाय कि "गुरस्यवत्पतमाभारुप मोति पतनप्रतिवम्भकाभाव से भिन्न पतनसामग्रीको समकालीन होती है वह मुरत्खेतर पतन कारण के प्रमाण से प्रयुक्त होती है तो पचपि व्यभिचार नहीं होया क्योंकि प्रतियधकामाव से इतर पतन की सामग्री पतनप्रतिबन्धकालीन सामग्री की होगी। अतः तत्कालीन धलि में गुरबार प्रतिधकामावरुप पनि कारण कं प्रतियधकरूप अमाव से प्रयुक्त होन क नाते व्यभिचार नहीं हो सका। उक्त विशेषण विशिष्ट पति में भी गुरुत्वेसरपतनस्वभावयुक्त की व्याप्ति सिद्ध नहीं है पाकिगवान माण को पतनाभावरूप तिवादश सामग्रीकालीनति, जिसमें सत्तर पतनकारणाभाषप्रयुक्तस्य नहीं है। अत: उस ति में उक्त व्याप्ति का व्यभिचार हो जायगा। यवि यह कहा जाय कि बेगवान धारा के पलन का कारण गरूप निबन्धक का प्रभाव है। प्रत: वेगवान् बाण का पसमाभाव प्रतिबन्धकानावरसामग्रोफालोन महीपार प्रतिबन्धकमासान ही सामग्री है। प्रतः प्रतिबन्धकामावेतरसामग्रोकालीनस्वविशिष्ट तित्व उस में नहीं है अतः उस में स्मभिचार का प्रयशन असगत है'-तो यह टाक नहीं है. क्योंकि बाणगत के भी पास के पनाम का प्रतिबन्धक नहीं माना जा सकता। क्योंकि बाण का पतन होने पर ही बाण के वेग को निरस्त होती है। यदि वगको घाण के पतन का प्रतिबन्धक माना जायगा तो बाण का पतन कमी ही न हो सकेगा। यदि इस व्यभिचार का धारण करने के लिये धेगाऽप्रयुक्तस्व को भी धति का विशेषण मनाकर इस प्रकार प्याप्ति बनायो जय शि-'प्रतिबन्धकाभावतरपतनसामग्रीकालीन एवं वेगाप्रयुक्त गुरुत्ववपतमाभाष रूप पति गुरुत्वेतर पतन कारणामात्र प्रयुक्त होती है तो यह भी ठीक नहीं है। क्यों कि मन्त्रवेत्ता व्यक्ति मन्त्रविशेष से किसो गोलम्ब्रव्य को प्राकाश में स्थिर कर देते हैं । मन्त्रविशेष के प्रभाव से उसका पतन नहीं होने पाता। प्रप्त: उस गोलकतव्य के पतनामाव में उक्त ध्याप्ति का ध्याभधार हो जायगा, क्योंकि गोलाद्रव्य का उक्त पतनाभाव प्रतिबन्धकामाचेतरपतनसामग्रीकालीन है और वेगाप्रयुक्त भी है, किन्तु गुरुस्वेतर पतनकारण के समाव से प्रयुक्त नहीं है । मन्त्रविशेष को गोलक द्रव्य के पतन का प्रतिबन्धक मानकर उस के पतनाभाव में उक्त सामग्रीकालीनस्वरूप विशेषण का प्रभाव बता कर उस में व्यभिचार का वारग नहीं किया आ सकता। क्योंकि मन्त्रविशेष का पाठ बमकर देने पर मो गोलकद्रव्य पर्याप्त समय तक माकाश में स्थिर रहता है। प्रतः मधिशेष को उस के पतन का प्रतिबन्धक नहीं कहा जा सकता । यदि इस व्याभिचार का बारण करने के लिये पति में पत्रपटाप्रघुक्सत्य मी विगोषण देकर इस प्रकार ब्यास्ति बनायो जाय कि 'प्रतिबन्धकामामेतर पतनसामग्रीकालीनवेगाप्रयुक्त एवं बदष्टाप्रयुक्त गुरुपवत पतनामावम्प पति गुरुत्वेतरपतमकारणामावप्रयुक्त होती है। तो इस व्याप्ति के संभब होने पर भी इसके द्वाराबहाण्डको पति में गुजरबेतर
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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