SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६१ स्पा० का टीका-हयोषिषेचना ] - . -. . . . धृते नेश्वरसिद्धिः, गुरुत्वायतनामावमात्रस्य गुसन्वेनरहेन्यभावप्रयुक्तम्याऽऽम्रफलादावेर भिचारियाद । पनिवन्धकामावेतमामग्रीकालीनत्व विशेषणेऽपि गदिपुपतअनेक स्याप्य क्रियाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाय तो गमनादिरूप तप्तत क्रियामों के प्रति विभातीविजातीय रुप से जीवन योनिमित्त प्रघात काम होगा, अतः क्रिया सामान्य के प्रति प्रगलसामान्य को कणसा नहीं मिद्ध होगी। जिम कार्यकारणों में विशेष रूप से कार्यकारणभाव होता है उन में सामान्य रूप से भी कार्यकारणभाव होता है स माय में कोई प्रमाण नहीं होने से इस न्याय के बल से भी किया और प्रगल में सामाधप से कार्यकारणभाव नहीं माना जा सकता है। अत: उनके आधार पर प्रस्तुस अनुमानका मन अशक्य है। (घृप्ति हेतु ईश्वरासद्धि में अनेकान्तिक) ( ति से भी ईश्वर की अनुमानिक सिजि नहीं हो सकती. पोंकि पति का अर्थ है गुरास के शाश्रय मूत भय के पतन का अभाव, और उस से ईश्वरानुमान तभी हो सकता है. इस प्रकारको स्यानि भने कि 'गुरु थप के पतन का जो हो अभाव होता है वह गुठव मे इतर, पतन कारण के अभाव से प्रयुक्त होता है। किन्तु यह श्याप्ति नहीं कर सकती। क्योंकिपन को शाखा में लोहए थाम्रफल में व्यभिचार है। आशय यह है कि आम्रफल गुरुद्रव्य है। किन्तु जब वह शाखा म लगा हुआ होता है तब माता पापा से हर किसो हेतु का अमान नहीं है। यदि यह कहा जाय किशासाप धुक्स के साथ भानफाल का संयोग की भाम्रफल के पसन का प्रतिबन्धक है इसलिये गुरुत्व में सर परन का कारण हुआ 'न्त के साथ आनकल के संयोग का अभाव और उसका अभाव हम! वृन्त के साथ धाम्रफल का संयोग, आम्रफल का पतमामा' उस संयोग से प्रयुक्त है अतः मात्रफल में उक्त व्याप्त कामभिवार बहाना असङ्गत है."तो यह कथन ठीक नहीं कहा जा सकता, किसके साथ आप्रफल के संयोग को मात्रफल के पसन का प्रतिमन्धक नहीं कहा मा सकता, क्योंकि वह यदि प्रतिबन्धक होगा तो उस का अभाव होने पर ही मात्रफल का पतम होना चाहीए किन्तु ऐसा नहीं होता। अपितु आम्रफल में पसनान्य कर्म पहले उत्पन्न होता है। तत्पश्रात उस कम से खम्त के साथ भान. फल का विभाग होकर वन्त के साप मान्नफल के सयोग का स्वामक प्रभाव निष्पन्न होता है। सारांश, न्यायमतप्रकियानुसार पतनकम पहले हुआ, वसंघोगाभा बाक मे आ । तो इसम में संमोगाभात्र कारण कहां बना? यदि यह कहा जाय कि-'पात्रफल में जो पतनकम होगा वह वेगवान वायु प्रषया वेगवान् वण्डाविक प्रमिधारा से उत्पन्न होगा। जिस समम यह मभिधात उपस्थित नहीं है उस समय में माम्रफल का पतनामाव मुरुत्व से इतर पतन के कारणभूत उस अभिघात के प्रभाव से ही प्रयुक्त होगा । प्रतः प्राम्रफल के पतनाभाव में गृशस्वेतर पतनकारण के प्रभाव का प्रयुक्तत्व होने के कारण मात्रफल में व्यभिचार का प्रदर्शन फिर भी प्रसङ्गात है-जो यह कथन भी ठीक नहीं है क्योकि उक्त अभियात पतन का कारण नहों, किन्तु सामान्य कर्म का कारण है, क्योंकि धेगवान बायु पावणाषि के भनिधात से भूसल में एक स्थान में स्थित गुशाग्य का स्थामास्तर में अपरूपण भी होता है, जिसे पताम्म मही कहा जा सकता । प्रतः उक्त प्रमिधान से प्रान्नकल में जो सामान्य कर्म उत्पन्न होता है यह पात्रफल
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy