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________________ स्था का टीका-हिन्वीयिवेचना ] चाल्यम् । पूनमंयोगादिध्वमपूर्णपणुकादिध्वमानामृत्तग्मयोगद्रवणुकादायततः कालोपाधिस्तयापि जनकन्वान , तत्कालेऽपि कुलालादिकने स्वप्रयोज्यविजातीयमयोगेन मन्त्रात; अन्यथा घटत्यचिछन्ने दण्डादिहेतुत्वमपि दुर्वच म्यात् । 'दण्डादिजन्यताबछेदफं विलक्षणघटत्या. दिकमेवे' ति चेत् ? कृतिबन्यतावच्छेदकमपि तदेवेन्यताम् । 'कृतेलाचाष्ट्र विशेष्यवयव हेतुत्वात् था दण्डस्य म्बप्रयोज्यकपालयमयोगेन सत्त्वम् , न तु विशेष्यनया कुलालकृतिः, मोद खण्डघटे तलिद्धिरिति चेत् ! न, कृतेर्गय स्वप्रयोज्यसंपन्धेनच हेमन्यात् । विजानीग प्रयोगत्वेन मंबन्धन्वे गौग्यान, पदन्धामिछन्ने विजानीयकृतित्वेनैव हेतुत्वाच्चैति दिक् । [ वैशेषिकमतानुसारो पाकप्रक्रिया को पालोचना ] यपि यह कहा जाय कि-'शेषिक मस में पाक से श्यामघट का नाश होने के बाद जब रक्तघट की उत्पति होती है तो इसके पूर्व श्यामघट का पाक पर्यन्त माश हो जाता है। केवल विश्वत परमाणु रह जाते हैं और फिर परमानों के संयोग से दूषणुक श्यणक सादिकी उत्पत्ति होकर कपालउपके मोसंयोग से नये घट की उत्पति होती है। इस प्रकार मये घट की उत्पत्ति के समय लाल की पूर्वकृति से होनेवाला संपूर्ण संयोग मावि का नाश हो जाने से उक्त कृति के स्वप्रमोम विजातीयसंयोग सम्बन्ध से अस्तित्व की कल्पना प्रसंभव है'- सो यह ठीक नहीं है। क्योंकि पाक स्थल में नये पर की पत्ति के लिये किलर कमान पन्त नयों को प्रावण्यकता होती है उनके प्रति वर्षवर्ती परमाणुसंयोगावि मौरचणुकावि का नाश कारण होता है। बाकि किसी भी प्रध्य में किसी कार्यव्रम्प के रहते नये ट्रन्म की उत्पत्ति नहीं होती एवं दो द्रव्यों में पूर्वोत्पन्न संयोग के पते जन प्रज्यों में नये संमोग को उत्पति नहीं होती इस उत्सर पूण्य के प्रति पूर्व क्ष्य का नाश और उत्तर संयोग के प्रति पूर्व संमोग से नाश को कारण माममा प्रायश्यक होला है और इसके अतिरिक्त कालोपाधिहप में भी पूर्व संयोग और पूर्व सघणकादि का नाश, उसर संयोग और उत्तरायणकादि के नाश का कारण होता है। अतः पाक स्थल में नवीन घट को उत्पत्ति के समय बु.साल 1 पूर्षकृति फे स्वप्रयोश्य विजातीय संयोग सम्बन्ध से रहने में कोई बाधा नहीं हो सकतीयोंकि महीन घट के लिये अपेक्षित परमाण संयोग और यघणुकावि पुर्व संयोग और पूर्व क्षणवावि के नाम से जन्म है पोर उपत नापा अपने प्रतियोगी से जन्म है और प्रतियोगी पुलास की कृति से अन्य है। मरकुलाल कृति से जन्म होने वालों को परम्परा में ही नवीन घर के उत्पाबक कपालद्वय संयोग के होने से उसे कुलाल को पूर्व कृति से प्रयोग्य मानना सर्वथा खास है। इस प्रसङ्ग में यह बात ध्यान देने योग्य है कि परमाणुनों का संयोग और दूधकारिकी उत्पत्ति कुलाल कति से नहीं होती। कुलाल कृति से तो कपाल मौर कपाश्यका संयोगही उत्पघ्र होता है, प्रतः नवीन घर के उत्पादक नवीन कपालदूध संयोग को कुलाल कृति से प्रमोश्य इसलिये मानना चाहिये कि वह कुलाल कृति से उत्पादित पूर्व कपाल और पूर्वरुपालाय संपोग के माश में उत्पन है । माल्पाकार का कहना है कि पाक स्थल में नवीन घट की उत्पसि के समय स्वप्रयोज्य विजातीय संयोग संबंध से कुलाल की पूर्वकृति का अस्तित्व माममा मावश्यक है। यदि ऐसा न माना जायगा तो घट सामान्य के प्रति वण्डमादिको कारणता का समर्थन न हो सकेगा । पोंकि पाक से मवीन घट को उत्पत्ति के समय व मावि मी नहीं रहते। मतः उस षट के लिये यदि ईश्वरीय कृति
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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