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________________ ] [शा. पा. समुरुचव स्तर-३ लोक । अत एव पाकेनापि नान्यघटोत्पत्तिः, विशिष्टसामग्रीचशाद् विशिष्टवर्णस्य पदादेव्यस्य कश्रिदविनाशेऽप्युत्पत्तिसंभवात , इति नसक्नं सम्मनिटीकायाम् । परेषामपि स्वप्रयोज्यविजातीयमयोगसंपन्धन तत्काले किलालक मत्वाच्च । न च वै शोपिफनो श्यामघटादिनाशोत्तर रक्नघटा घुस्पनिकाले प्राक्तापामासु यसंयोमा परमादेश सीमि पूर्णपर्याय की नियुक्ति होकर व पर्याष की उत्पति होती है । तो जब कोई नपा घट उत्पन्न ही नहीं होता तब उसके कर्ता रूप में किसी पुरुषविशेष की कल्पमा केसे को जाये? व्याख्याकार ने अपने इस कथन के समर्थन में प्राथभिमा को प्रमागरूप में प्रस्तुत किया है। उनका आशय पह है कि किसी घट में से कुछ मंचा निकल जाने के बाद भी एव प्रय घट:' = यह वही घट है। इस प्रकार यतमान घट में पूर्वघट के तावास्भ्य काशन होता है। म पूर्व घटका मामा होकर नये घट की उत्पत्ति मानो जायेगी तो इस तावात्म्य बसमरूप प्रत्यभिज्ञान को उपपास नहीं हो सकती। मवि यह कहा जाय कि यह प्रत्यमितान यथार्थ नहीं है किन्तु भ्रमरूप है । अत. इस से पूर्णयट और खंघट की एकता नहीं सिसहो सकती-तो यह ठीक नहीं है। क्योंकि उक्त प्रत्यभिज्ञा को भ्रम मानने पर उसके हारमारूप में साहाय प्रावि वोष को कल्पमा कामी होगी । और जहां भी प्रत्यभिजा होती है वहां सषेत्र उसे भ्रम मानकर प्रणभिमान पायको पुष पार्थ से भिन्न मामले की स्थिति उत्पन्न झोमे से अनेक पदार्थों की काल्पना का गौरव भी हो सकता है। यदि यह कहा काय-कि-खण्यघट में पूर्वघर के ताबारम्प का वर्शन श्रम है. जो रोमों में माशिम होने पर साहस्य के कारण होता है :सो यह ठीक नहीं है. क्योंकि इस पाल्पता में पूर्वपट कामाचा भोर मौत घट की उत्पत्ति तथा इन दोनों में ताबारम्यान के लिए सारश्म में दोबारको कल्पना होने से अतोष गोरख है। (पाकक्रिया से अश्यघट उत्पत्ति प्रक्रिया को समालोचना) इसीलिए सम्मति टीका में भी यह बात स्पष्ट की गई है कि पाक से श्यामघट का मा होने पर पाय घर को उत्पत्ति नहीं होती। किन्तु विशिष्ट सामग्री के प्रभाव से पूर्ववर्ग से विलक्षण घणेशालो जमी पटतव्य की उत्पत्ति होती है उस के पूरणं को मिति हामे परभी उसका नाश ना होता। बयोंकि प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण में पूर्व पर्याय के रूप में मष्ट होते हुए और उत्तर पर्याय के रूप में उत्पन्न होते हुए भी अपने मूषप्रध्य के रूप में स्थिर रहती है। शेविक आदि के मस में यदि पाकरयल में पूर्वघट का नाश होकर नवीन घर को उत्पत्ति होती है, तथापि सत घटके कारणरूप में ईश्वरीयकृति की कल्पना आवश्यक नहीं है क्योंकि कृति घटने प्रति साक्षात कारण न होकर स्वप्रयोज्य विमातीष संयोग समंध से शो कारण होती है। और स्वत सपोगसम्बन्ध से पाहाचल में भी कुलाल की पूर्वकृति होने में कोई बाधा नहीं है। क्योंकि उस समय मिस कपालमय संमोग से घटको उत्पत्ति होती है उसे 'मी कुलाल की पूर्वकृति का प्रयोगप माना जा सकता है, क्योंकि कुलाल को पूर्वकृति से उसी प्रकार का संयोग होकर यवि पूर्वघट म होता तो उसके पाक और पाक से नये घट की उत्पति को स्थिति ही न होतो। प्रतः यह कहा जाना सर्वथा सगत है कि या घट जिन्स कपालद्वम संयोग ले उत्पन्न होता है वह भी परंपरा से पूर्वघर के उत्पाबफ कुलाल की पूर्वकृति का प्रयोज्य है।
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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