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________________ [ २३ श्या०० टीका-दीन ] पदापि पद्यते गम्यतेऽनेनेति पदं व्यवहारः ततः 'घटादिव्यवहारः स्वतन्त्र - पुरुषप्रयोज्यः व्यवहारत्वात् बाडुलिपि पूर्वकुलालादिने वाऽन्यथामिद्धिः प्रलयेन सच्छेिदात् । " [ व्यवहार प्रयत्तक रूप में ईश्वरसिद्धि ] ▾ पत्र से भी ईश्वर का अनुमान होता है । पद शब्द की व्युत्पत्ति है 'पराते गम्यते ज्ञायते श्रनेनेति । अर्थात् जिस से पदार्थ ज्ञात हो उस का नाम है पर इस व्युत्पत्ति के अनुसार पत्र शब्द का अर्थ है हार और व्यवहार का अर्थ है लबू लबू अर्थों में परम्परा से प्रयुक्त होनेवाला तल शब्द जैसे घटरूप अर्थ में सुदीर्घ परंपरा से प्रयुक्त होनेवाला घट शव एवं पट रूप अर्थ में सुवीर्थ परंपरा से प्रयुक्त होनेवाला शब्द आदि । इस पयार के द्वारा जो ईश्वरानुमान प्रमित है उस का प्रयोग इस प्रकार होता है-घट दि प्रयों में प्रयुक्त होनेवाला घट परादि शब्दरूप व्यवहार किसी स्वतस्त्र पुरुष से प्रवर्तित हुआ है क्योंकि वह व्यवहार है। जो मो व्यवहार होता है यह सब किसी स्वतंत्र पुरुष से प्रतीत होता है। जैसे श्राधुनिक मनुष्यों द्वारा कन्त मावि वर्णों के लिये कल्पित त्रिपि" । आशय यह है कि जैसे कख प्रावि वर्गों के लिये विशेष प्रकार की लिपि का व्यवहार किसी श्राधुनिक स्वतंत्र पुरुष के द्वारा प्रचारित होता है उस प्रकार घट पावि प्रथों में घट मावि शब्दों का प्रयोग व्यवहार भी किसी स्वतन्त्र पुरुष के द्वारा प्रवर्तित होना चाहिये और वह पुरुष कोई प्राधुनिक नहीं हो सकता, क्योंकि यह व्यवहार अनादिकाल से चल रहा है। अतः इस अनादिकाल से प्रवृत व्यवहार के प्रारंभ में जो पुरुष रहा हो वह ही उस का प्रवर्तक हो सकता है। आधुनिक पुरुष तो घट भावि प्रथों में घट आवि शास्त्र का प्रयोग अपने पूर्ववर्ती पुरुषों से शीलकर करते हैं। वह उस के स्वतन्त्र प्रवर्तक नहीं होते हैं। उस का स्वतन्त्र प्रवर्तक यही कहा अध्यगा जिस को घट आदि प्रयों में घट आदि शब्द के प्रयोग करने की शिक्षा लेने को अपेक्षा नहीं होती किन्तु वह स्वयं निर्धारित करता है कि घटादि श्रयों को बताने के लिये घट यादि शब्दों का प्रयोग होना चाहिये। (कुलालावि से हो अन्यथासिद्धि की आशंका ? इस संदर्भ में यह शंका हो सकती है कि- 'जो जिस वस्तु को बनाता है वह इस वस्तु का नाम निर्धारित करता हैं। जैसे आधुनिक मन्त्रावि को बनानेवाला मनुष्य उस का कोई नाम निखिल करता है। उसी प्रकार घट आणि वस्तुक्रों को निर्माण करनेवाला मनुष्य ही जन के घट मावि नामों को निर्धारित करता है इस प्रकार घट का निर्माण करनेवाला प्रथम कुम्हार हो घट व्यवहार का और पट का निर्माण करनेवाला प्रथम जुलाहा ही पद व्यवहार का मूल प्रवतंक है। इस प्रकार कुलाल बाय इत्यादि आधुनिक मनुष्यों द्वारा हो घटपटादि व्यवहार का प्रवर्तन संभव होने से उस के मूल प्रवर्तक के रूप में ईश्वर की कल्पना नहीं हो सकती। किन्तु यह शंका उचित नहीं है क्योंकि शास्त्रों में सृष्टि के निर्माण और प्रलय दोनों की चर्चा है। और अनुमान से मो सृष्टि का प्रलय के बाद होना सिद्ध है। जैसे 'वर्तमानं स्थूलद्रव्यात्मकं जगत् यसन्तानशून्यंः उपादानकारणेः उपस्थूलता प्रदीप्तवासात ।' इस से यह सिद्ध होता है कि प्रलय के बाद नई सृष्टि का निर्माण होता है। छतः एव उस में घटपट मावि की प्रथम रचना प्राधुनिक कुलालादि से
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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