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स्वाक टीका-हिन्दी विवेचना
मूलम्-अझो जन्तुरनीकोऽयमापनः सुखदुपयोः।
ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्स्वर्ग वा वनमेध या ॥३॥ अर्थ संसारी जन्तुः, आत्मनः सुख-दुःखयोर्जायमानयोः, अनीश: अकर्ता, यतोशः हिताऽदितप्रवृत्ति-निवृत्युपायानभिन्ना, अतः स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वानरकमेव था, ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्र , अज्ञाना प्रवृत्ती परप्रेरणापा हेतुत्वावधारणात् । पश्वादिप्रयतौ तथादर्शनात् । अचेतनस्यापि घेतनाधिष्ठानेनैव व्यापाराच्च । अत पत्र
"मयाऽध्यशेण प्रकृतिः सूयते सभराचरम् ।
तपाम्यहमह बर्ष निगृह्याम्युन्सृजामि च ॥१॥" [ गीता- ] इत्यागमेन सर्वाधिष्ठानत्वं भगवतः श्रूयते, इति पातजलाः । नैयायिकास्तु वदन्ति
"कायो-योजन-धृत्यादेः पदान् प्रत्ययता श्रुतेः । चाक्याव मंख्याविशेषाच्च साध्यो विश्वविदव्यपः ॥१॥" [न्या कु०५-१] इति ।
। पालन्जलमनागपार पलर का जपत्र ) संसारी जीय को अपने सुखनुःख के उपाय का ज्ञान नहीं होता। 'पया करने से उस का हिल होगा और क्या करने से उस का अहित होगा ?' इस बात को वह स्वयं नहीं सोच पाता । इसलिये अपने सुखनुस्ख का वह पर्ता नहीं हो सकता । प्रतः एव यह मानना प्राधायक है फि जोव ईश्वर की प्रेरणा से ही ऐसे काम करता है जिन से रुवर्ग प्रषवा नरक की प्राप्ति होती है, क्योंकि प्रमों की प्रवृत्ति में यह प्रेरणाही कारण होती है-पह सर्व विवित है । पशु मामि की प्रवृत्ति लोक में प्रेरणा से ही वेखी जाती है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि-मीत्र अपने सुख-दुख का उपाय न जानने के कारण अपने सुन-पुल का संपावन स्वयं भले न कर सके परन्तु प्रकृति अथवा बुद्धि के व्यापार से उसे मुख-दुख होने में कोई बाधा नहीं हो सकती' । यह कहना इसलिपे संभव नहीं हैं कि प्रकृति एवं बुद्धि स्वरावतः अचेतन होती है, प्रत एवं चेतन के सम्पर्क के विना यह भी सव्यापार महीं हो सकती क्योंकि लोक में चेतन बाई आदि के सम्पर्क से ही अचेतन कुठारावि में काष्ठलेवन के म्यापार का होना देखा जाता है । इसीखिए गीता में श्रीकृष्ण ने स्वर्ष कहा है कि-प्रकृति सर्याध्यक्षभूत हमारे सम्पर्क से ही चराघरास्मक जगत का सर्जन करती है। में हो तापक हूं पोर में ही जल के अवर्षण मौर वर्षण का कारण हैं।' ईश्वर के कर्तृत्व के सम्बन्ध में पातञ्जलों का यही संक्षिप्त दृष्टिकोण है।
( जगरकर्तृत्व में नैयायिकों का अभिगम) मंयायिकों का इस सम्बन्ध में दृष्टिकोण दूसरा है । यह ईश्वर को परप्रेरक के रूप में का न मानकर साक्षात उसी को विश्व का कर्ता मानते हैं। उदयनाचार्य मे प्यायकुममाञ्जलिप्रन्थ में 'कार्यायोजनस्यायो' इस कारिका से घर में कर्तृत्व में सिद्ध करने वाले अनेक मनुमानों का