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[ शापा, स मुख्यय रुतम-4 नोक-२ ईशित्यम् , यप्रकामारसायित्वं चेति । यतो महानणुर्भवति सर्वभूतानामप्यदृश्यः, सोऽणिमा । यतो लघुर्भरति सूर्यरश्मीनप्यालय पूर्पलोकादिगमनसमर्थः, स लपिमा । पतोऽल्पोऽपि 'नाग-नगादिमानो भवति, स महिमा । यतो भूमिठरणाप्पगुल्यग्ने गगनस्थादियानुप्राप्तिः, सा प्राप्तिः । प्राकाम्यमिच्छानमिषातः, यत उदक इव भृमान्मजति निमज्जति च । चशित्वम्-यतो भूत-भौतिकेा स्वातन्त्र्यम् । ईशित्वम्-यतस्तेषु प्रभष-स्थिति-व्ययानामीष्टे । यत्रकामावसायित्वम् -यसः सत्यसंकल्पता भवति, यथेवरसंफन्पमेव भूतभावादिनि । धर्मश्व प्रयत्न-संस्काररूपोऽधर्माभायादप्रतिघः । एममतुष्टयं सहसिद्धम्-अन्यानापेक्षतयाऽनादित्वेन व्यवस्थिनम् । अत एव नेश्वरस्य कूटस्थताव्याघाता, जन्यमानावयत्यादिति बोध्यम् ॥२॥ तस्य कन वे क्तिमा
(१) जिस शक्ति से महान वस्तु अणु हो कर अन्य प्राणियों के लिए प्रहाय बन जाती है वह मानिस पानी की जानी है !
(२) जिस शक्ति से गुरु प्रस्तु लघ हो कर सूर्य की किरणों के सहारे सूघलोक प्रावि सक जामे में समर्थ हो जाती है वह पावित लधिमा कही जाती है।
(३) जिस शक्ति से लघु परिमाण को वस्तु हाथी और पर्वत मादि के समान विराट हो जाती है वह शक्ति महिमा कहो जाती है।
(४) जिस पर विप्त से भूमि में स्थित मी मनुष्य अपनी अंगुलो के अग्र भाग से प्राकाशस्थ वस्तु कास्पर्श कर सकता है यह शक्ति प्राप्ति' कही जाती है।
(५) प्राकाम्य का अर्थ है ।छा का पभियात न होना । इस गति से मनुष्य जल के समान स्पल में मो भीतर और बारमा जा सकता है।
(६) शिव का अर्थ है भूत और भौतिक वस्तुओं के विषम में स्वातन्मम । इस शक्ति से मनुष्य मृत मोर भौतिक पदार्थों का यथेष्ट विनियोग कर सकता है।
(७) ईगिरथ का अर्थ है वह लामय जिस से ममुख्य भूत मौर भौतिकों के उत्पादन पालन और विनाश करने में समर्थ होता है।
1) पत्र कामावसायित्व का अर्थ है सस्य संकरुपता । इसी शक्ति के कारण अगत् के सम्पूर्ण मूत और भौतिक पदार्थ ईश्वर के संकरपानुसार ही होते है।
धर्म का अर्थ है प्रयत्नरूप संस्कार । ईश्वर में प्रधर्म नहीं होने से उस का धर्म भी पूर्ण रूप से अप्रतिहत होता है।
"इस प्रकार जान वैराग्य ऐश्वर्य और धर्म-ये चारों चीजें वर में सहसिब-नित्य सिद्ध हैं प्रर्यात प्रत्य निरपेक्ष होने के कारण ये चारों पनादि है। इसीलिए घर को कूटस्पता भी व्याहत नहीं होती है, क्योंकि यह जन्य धर्म का प्राश्रम नहीं होता।
तीसरी पारिका में ईश्वर के कट्टरव को साथ युक्ति बताई गई है। कारिका का पर्व इस प्रकार है-
१ नागो-हस्ती, नगः-पर्वतः । २ “स्मत्यर्थदधेशः" ॥ २॥२॥१॥ इति सूत्रेण कर्मसंज्ञाया विकरपेन पक्षे षष्ठी।