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स्याम टीका-हिन्दी विधेचन ]
परिपाकषिध्यदर्शनेऽपि नियतिपरिपाकः स्वभायादेथे ति चेत् ? घट्टकुटीयभातापत्तिः । 'उत्तरप. रिपाके पूर्वपरिपाक एव हेतुः, आयपरिपाके घान्तिमापरिपाक एव इत्यादिरीन्या विशिष्य-हेतुहेतुमद्भायाद् न दोष' इति चेत् १ सहर्येकदैका घनियतिपरिपाकऽन्यत्रापि घटोत्पत्तिः, प्रतिसंतानं नियतिभेदाभ्युपगमे च निर्याप्तपरिपाकयोई व्यपर्यापनामान्तरत्न एव विवादः ।
किन, एवं शास्त्रोपदेशवैयर्थ्यप्रसक्सिः, तदुपदेशमन्तरेणाऽप्पर्धेषु नियतिकृतत्व युद्धनियत्यय भाषात , इष्टा-SELफलशास्त्रप्रतिपादितशुभाशुभक्रियाकलनियमाभायश्च स्यात् । सद्धेतुकत्यान्तर्भावितनियमस्य नियतिप्रयोज्यत्वे घ सिद्धमिनाहेतुना, पारिभाषिककारणत्यनिक्षेपम्याञ्चायकत्रादिति दिग् ॥७३॥
आयगा नो नियति से आंतरिक मfa से नाम: ५ मिनी आइसि भापरिहार्य हो बायगी। यदि यह कहा जाम कि- अन्य परिमाकों का विषय भले अपहेतुक हो, पर नियति का परिपाकविष्य अन्य हेतु से होकर नियतिके स्वभाव में ही होता है अत: नियाकपाप का परित्याग माही होगा तो यह कथन कर-रात्रवेन प्रहण के लिये प्राट पर बनी कुट। में ही प्रमात होने के समान होगा, क्योंकि मियक्ति के स्वमविभेर को हो नितिपरिपाक के अविष्का प्रपोजक मानने के कारण स्वभाववाद का प्रवेश हो जाने से नितिवाद के परित्यागापति का सकट पूरबत पुनः उपस्थित हो जायगा।
यदि यह कहा जाप कि-'मियप्ति का उत्तरपरिपाक नियति के पूर्वपरिपाक में होता है और नियति का प्रथमपरिपाक नियति के अन्तिम अपरिपाक से होता है, इस प्रकार नियतिस्थरूप 'मिति के परिपाकविशेष' से ही नियति के नियमस्वप अन्य परिपाकों को तत्तत्परियाकव्यक्ति पर आधारित विशेष कायकारकमावों से अपील हो जाने के कारण मितिवार के परित्याग की आपत्ति नहीं होगी-'तो यह कथन ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि उक्त कल्पना करने पर जस समय कहीं एकत्र घटजननिर्यात का परिणाम होगा उस समय अन्यत्र भी घटोत्पत्ति की आपत्ति होगो और यदि इस दोष के निवारणा प्रतिसन्तान में नियमिमेव की कल्पना की जावो तो नियत
और परिपाक में मुख्य और पर्याय से कोई अन्तर न हागा, फेवल नाम में ही विवाद रह जायगा जिस का कोई महत्व नहीं है।
[ नियति मात्र को कारण मानने पर शास्त्रवैयर्थ्य ] मितिबाद में अब तक जो धोष बताये गपे उनके अतिरिक्त एक यह भी दोष है कि नियतिपात मानने पर कार्यों में मितिहेतुकरव का प्रतिपादक शास्त्र निरर्थक हो जाममा क्योंकि उत्तवाव में कार्यों में नियतिब्रम्पान का प्रान मी नियति से ही सम्पन्न हो जायगा । इसी प्रकार इस बाद में शास्त्र मारा प्रतिपादित यह निमम भी बन सकेगा कि अमुक शुभ-अशुभकर्म से अमुक एकर बा अष्ट फल होता है.योंकि इस पाव में मिपति से अतिरिक्त कोई कारण मान्य न होने से शुभाशुभ कम को मी सतम्फल का कारण म माना जा सकेगा । अत: शास्त्रप्रतिपावित उक्त नियम की उपपत्त इस चाप में सम्भव ही हो सकती, और यदि सतत कल में सत् शुभ-अशुभकर्म हेनुकरण के नियम को भी