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स्था० क.. टीका व हिं. वि० (स्या०) अहिंसादिसम्पत्ति निमित्तमेवाइ-साध्विति
मूलम् - साधुसेवा सदा भक्त या मैत्री सरयेषु भावतः ।
____ आत्मीयग्रहमोक्षश्च धर्महेतुप्रसाधनम् ॥६॥ सदा-सर्वकालम्, भक्तया-बहुमानेन, साधुसेवा-मानदिगुणवृद्धोपासना, भावतोनिश्चयतः, सन्वेषु प्राणिषु, मैत्री-प्रत्युपकारनिरपेक्षा प्रीतिः । आत्मीयग्रहस्यममत्वपरिणामस्य मोक्ष:- परित्यागो यस्माद, बाह्यसङ्गल्याग इत्यर्थः । स च धर्महेतनामहिंसादीनां प्रकृष्ट-फलायोगव्यवच्छिन्नं साधनम् । अत्र 'प्रसाधनम्' इत्येकवचनेन स्वेतरसकलकारणनियतत्वं व्यज्यते ॥६॥ ___इस कारिका में धर्म के अहिसा भादि हेतुओं के सम्पादन का निमित्त बताया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
धर्मकामी मनुष्यों को ये तीन कार्य सदा करने चाहिये, (१) साधुजनों को भक्ति पूर्वक सेवा, (२) सभी प्राणियों के साथ भावपूर्वक प्रत्युपकार निरपेक्ष प्रीति, और (३) बाह्यला का परित्याग . दुलन कार्य है विनुभवृाजार से अधिक पान आदि सद्गुणों से सम्पन्न पुरुष, और उनकी सेवा का अर्थ है उनके सम्पर्क में आना, उनके उपदेश सुनना और उनके उपदेशों को जीवन में उतारने का प्रयत्न करना । यह तभी सम्भव है जब सेवाकारी में पैसे पुरुषों के प्रति भक्ति हो, सम्मान की भावना हो और उनके साथ सदेव सम्पर्क बनाये रहने की कामना हो । भावपूर्वक प्रत्युपकारनिर. पेक्ष प्रोति का अर्थ है प्राणियों के साथ पेसा प्रेम, जिसमें प्रत्युपकार की कुछ भी अपेक्षा न हो और उसे स्थिर रखने का दृढ़ निश्चय हो । इसके लिये आवश्यक है कि अपने स्वार्थमा को न देखकर प्राणियों से प्रेम करना, उनके कल्याण की कामना रस्त्रना, उनके प्रति वैर विरोध व ट्विंसा की भावना न रखना मनुष्य का स्वभाव बन जाय । कारिका के 'आत्मीय प्रहमोक्ष' शब्द का अर्थ है वह कार्य, जिससे आत्मीयग्रह से-अर्थात् ममत्व धुद्धि के बन्धन से मुषित हो सके । वह है, बाहासा का परित्याग | बाह्यसको परित्याग का अर्थ है सांसारिक विषयों में सुम्बसाधनता को बुद्धि और तन्मूलक विषयासक्ति का परित्याग । ___ उक्त तीनों कार्यो में बाह्यसङ्गत्याग का सर्वाधिक महत्व है, क्योंकि वह धर्म के अहिंसा आदि हेतुओं का एकमात्र प्रकृष्ट साधन है। 'प्रकृष्ट साधन' का अर्थ है वह साधन जिसमें फल का अयोग कभी न हो, जिसके उपस्थित होने पर फलोदय अनिवार्य हो, पेसा साधन वही हो सकता है जो फल के अन्य सभी साधनों से युक्त हो, जिसके उपस्थित हो आने पर फिर किसी अन्य साधन की उपस्थिति अपेक्षणीयन रह माय । यही बात 'प्रसाधन शम्न के उत्तर पक वचन विभक्ति के प्रयोग से व्यक्त की गयी है। बाखसा का त्याग धमहेतुओं का पेमा दो साधक है जिसके सिद्ध हो जाने पर अहिंसा आदि हेतु अनायास सम्पन्न हो जाते हैं।