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. १४) भाषारहस्य- प्रशापनादि उपाङ्ग में प्रतिपादित भाषा के अनेक भेद-प्रभेदों का इस में विस्तृत वर्णन है।
१५) सामाचारीप्रकरण- इच्छा- मिथ्यादि दशविध साधुसामाचारी का इस ग्रन्थ में सकथेली से स्पष्टीकरण है।
-: अन्यकर्तृकग्रन्थ की उपलब्ध टीकाएँ :१) उत्पादादिसिद्धि- ( मूलक -चन्द्रसुरि )- इस ग्रन्थ में जैनदर्शनशास्त्रों के अनुसार सत् के उत्पादव्ययप्रीवात्मक लक्षण पर विशद प्रकाश डाला गया है- उपाध्यायजी विरचित टीका पूर्ण उपलब्ध नहीं हो रही है ।।
२) कम्मपयडि बहद् टीका- ( मूलका - शिवशर्मसूरि )- जैनदर्शन का महत्त्व का विषय कम के ' बन्धनादि' विविध करणों पर बिवरणात्मक टीका है ।
३) कम्मपडि लघुटीका- इस टीका का प्रारम्भिक पत्र मात्र उपलब्ध होता है ।
४) तत्त्वार्थसूत्र ( प्रथम अध्याय मात्र ) टीका- (मू-या० उमास्वाति ) इस टीका ग्रन्थ में तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय का रहस्य प्रकाश में लाया गया है ।
" ५। योगविशिका टीका- इस में श्री हरिभद्रसूरि विरचित विशितिविशिका - अन्तर्गत योगविशिका की विशद व्याख्या है- इस में स्थान - उर्ग - अर्थ आलम्बन और निरालम्बन पांच प्रकार के योग का विशद निरूपण किया गया है।
६) स्तवपरिज़ा अब रि- द्रव्य-भाव स्तव का स्वरूप संक्षेप से इस में स्फुट किया गया है । ०७) स्याद्वादरहस्य- वीतरागस्तोत्र के आठवे प्रकाश के उपर लघु-मध्यम और उत्कृष्ट परिमाण-तीन टोकात्मक इस ग्रन्थ में स्याद्वाद का सूक्ष्म रहस्य प्रकट किया गया है।
. ८) स्याद्वादकल्पलता- आ. हरिभद्रसूरि विरचित - शास्ववार्ता - समुच्चय ग्रन्थ की नव्यन्याय में विस्तृत व्याख्या ।
. ९) षोडशक टीका - इस टीका ग्रन्थ मे जैनाचार के आभ्यन्तर विविध प्रकारों का सुन्दर निरूपण किया गया है ।
१०) अष्टसहस्रो टोका- दिगम्बरीय विद्वान् विद्यानन्द के अष्टसहस्री मन्थ की ८००० श्लोक परिमाण व्याख्या ग्रन्थ है, जिस में दार्शनिक विविध विषयो की चर्चा है।
११) पातञ्जलयोगसूत्र टीका- पतझलो के योगसूत्र के कतिपयसूत्रों पर जैन दृष्टि से स्यास्या एवं समीक्षा प्रस्तुत की गई है ।