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(९. - महोपाध्यायं श्रीमद् यशोविज्यविरचिंतग्रन्थ परिचय- . .
प्राकृत संस्कृत भाषामें उपलब्ध स्थोपाटोका युक्त स्वरचित ग्रन्यकलापं .
१) अध्यात्ममतपरीक्षा- केवलीभुक्ति और स्त्रीमुक्ति का निषेध करने वाले दिगम्बर मत का इस ग्रन्थ में निराकरण किया है। एवं निश्चयनय-व्यवहारनय का तर्कभित विशदपरिचायक ।
, २) आध्यात्मिकमतपरोक्षा- इस ग्रन्थ में केवलिकवलाहार विरोधी दिगम्बरमत का खंडन करके केवलि के कवलाहार की उपपत्ति को गई है।
३) आराधक-विराधकचतुर्भङ्गो- देशतः आराधक और विराधक तथा मर्वतः आराधक और विराध क इन चार का स्पष्टीकरण ।
४) उपदेशरहस्य- उपदेशपद ग्रन्थ के रहस्य भूत मार्गानुसारी इत्यादि अनेक विषयों पर इस ग्रन्थ में प्रकाश डाला गया है ।
५) ऐन्द्रस्तुतिचतुविशतिका - इस ग्रन्थ में ऋषभदेव से महावीरस्वामी तक २४ तीर्थंकरों की स्तुतिओं और उनका विवरण है ।
६) कूपवृष्टान्त-विशदोकरण- गृहस्थों के लिये विहित द्रव्यस्तव में निर्दोषता के प्रतिपादन में उपयुक्त कूप के दृष्टान्त का स्पष्टीकरण ।
७) गुरुतत्त्वबिनिश्चय - निश्चय और व्यवहार नय से सदगुरु और कुगुरु के स्वरूप का प्रतिपादन इस ग्रन्थ में है।
८) ज्ञानार्णव- मति-ध्रुत-अवधि-मनःपर्यव तथा केवलज्ञान इन पांचो ज्ञान के स्वरूप का विस्तृत प्रतिपादन ।
• ९) द्वात्रिंशद्वात्रिशिका- ३३ श्लोकपरिमाण ३२ प्रकरणों में योग आदि विविध विषयों का इस में निरूपण किया गया है ।
१०) धर्मपरीक्षा- उपा० धर्मसागरजी के ' उत्सूत्रभाषी नियमा अनन्तसंसारी होते है । इत्यादि अनेक उत्सूत्रप्रतिपादन का इस में निराकरण है। __, ११) नयोपदेश - नंगमादि ७ नयों पर इस अन्य में श्रेष्ठकोटि का विवरण उपलब्ध है।
१२) महावीरस्तव- न्यायखण्डखाइटीका- बोल और नैयायिक के एकान्तवाद का इस ग्रन्थ में निरसन किया है।
, १३) प्रतिमाशतक- भगवान के स्थापतानिक्षेप की पूज्यता को न मानने वाले का निरसन कर मूर्तिपूजा को कल्याणकरता इस में वर्णित है ।