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. (५) देवन्द्र नरकेन्द्र प्रकरण-इस ग्रन्थमें सा और नरक के स्वरूप का विवरण है। मा. श्री मुनिचन्द्रसुरिजीम. इसके टीकाकार है।
१६) धर्मबिन्द- इस ग्रन्थ में मार्गानुसारिता देशविरति तथा सर्वविरति धर्म का सूत्रात्मक प्रतिपादन किया गया है। सुवर्ण की भाँति धर्म को तीन प्रकार की परीक्षा भी बतायी हैं।
(७) धर्मसंग्रहणी-इस ग्रन्थ में आत्मा की सिद्धि, आत्मा के नित्यत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व आदि की सिद्धि विस्तार से की गई है । अन्त में भावधर्म की प्ररूपणा तथा सर्वसिद्धि भी की गई है । इस ग्रन्थ की भाचार्य मलयगिरिकृत महत्त्वपूर्ण विस्तृत टीका है।
(८) धुर्ताख्यान-यह पक चार धूर्तों की कहानी है । जिस में अघटित कथाप्रसंगों के साथ पुराणादि की अघटित बातों की तुलना की गई है।
(९) नाणाचित्तपयरण-इस प्राकृत भाषा के ग्रन्थ में संक्षेर से धर्मतत्व का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।
(१०) पञ्चाशक-इस ग्रन्थ में करीब ५०-५० गाथाओं के १९ प्रकरण है । जिस में श्रावधर्मविधि, दीक्षाविधान, चैत्यवन्दना इत्यादि १९ विषयों पर मार्मिक उपदेश दिया गया है। . (११) ब्रह्मप्रकरण-इस ग्रन्थ में सुखारम्भ, मोहपराक्रम, मोहन, परमज्ञान, सदाशिव इन इन पाँच प्रकार के ब्रह्म का निरूपण है।
(१२) यतिदिनकृत्य-इस ग्रन्थ में दैनिक साधुक्रिया का वर्णन है। (१३) योगबिन्दु-इस ग्रन्थ में अध्यात्म, भावना, ध्यान,समता, वृत्ति संक्षय इन पाँच प्रकारके योग का अमूल्य उपदेश है। (११) लग्नशुद्धि-इस ग्रन्थ में ज्योतिःशास्त्रा प्रसिद्ध लग्नकुण्डली का विवेचन हैं।
१५) लोकतवनिर्णय- इस ग्रन्थ में जगत् -सर्जक-संचालक रूप में माने गए की मनु चित चेष्टाओं की असभ्यता बताई गई है । तथा लोक (Universe) स्वरूप को तारितकता का विचार किया गया है।
(१६) विंशतिविशिका-२०-२० श्लोक प्रमाण २० प्रकरण वाले इस ग्रन्थ में योगादि विविध विषयों का स्पष्टीकरण किया गया है।
(१७) षड्दर्शनसमुच्चय-इस ग्रन्थ में न्याय-चौद्ध-जैन इत्यादि छ दर्शन के सिद्धान्तो' का निरूपण मात्र किया है।
(१८) षोडशकप्रकरण इस ग्रन्थ में १६-१६ गाथाओ के १६ प्रकारणों में धर्म का आन्तरिकस्वरूप-कक्षा-देशना-लक्षण-मन्दिरनिर्माण इत्यादि विषयों पर मार्मिक विवेचन किया गया है।
( अनुसंधान पेज १४ देखिये )