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धर्म शुक्त ४ प्रकार के ध्यान का सुगम एवं मनोहर विवरण किया गया । विश्वमें ध्यान के विषय में द्वितीय ग्रन्थ है ।
(८) नन्दीसूत्र टीका -मति श्रुत आदि पांच ज्ञान का स्वरूप बतानेवाले मूलग्रन्थ नन्दी सूत्र के उपर संक्षिप्त विवरण है ।
(९) न्यायप्रवेशक टीका --बौद्ध दर्शन के प्राचीन विद्वान दिग्नाग का मूलग्रन्थ न्यायप्रवेशक की यह सुगम और संक्षिप्त व्याख्या है ।
(१०) पञ्चसूत्र पञ्जिका - पापप्रतिघात - गुणबीजापान आदि पाँच मोक्षोपयोगी विषयों का प्रकाश करनेवाले मूलग्रन्थ पञ्चसूत्र की यह संक्षिप्त व्याख्या है ।
(११) पिण्डनिर्युक्ति टीका- विविध दोषरहित पिण्ड-माहारादि को ग्रहण करने स्वरूप साधु आचार का निरूपण करनेवाले मूलग्रन्थ को यह दोका है। जो अपूर्ण रह जाने से पीछे से वीराचार्य भगवंत से पूर्ण की गई थी।
(१२) प्रज्ञापना प्रदेश व्याख्या - मूल उपांगसूत्र प्रज्ञापना को यह संक्षिप्त व्याख्या है । (१३) तत्वार्थ लघुवृत्ति-वाचक श्रीउमास्वातिनी विरचित तवार्थसूत्र का संक्षेप में विवरण किया है । विवरण अपूर्ण रह जाने से यशोभद्रसूरि ने इस को पूर्ण किया था ।
(१४) लघुक्षेत्र समासवृत्ति - इसप्रन्थ में संक्षेप से जैन भूगोल के महत्वपूर्ण विषय का निरूपण किया गया है। इस वृत्ति के अन्त में उसका रचना समय वि. सं. ५८५ बताया I (१५) श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्ति - श्री उमास्वाति वाचक विरचित मूलग्रन्थ की टोका में श्रावक आचार का संक्षेप में विवरण किया गया है।
३) सम्प्रति उपलब्ध स्वतन्त्र ग्रन्थ रचनाः
(१) अनेकान्तवादप्रवेश - अनेकान्त - स्याद्वाद मत का संक्षेप में इस ग्रन्थ में समझाबा गया है । ग्रन्थकारकृत अनेकान्तजयपताका ग्रन्थ में प्रवेश करानेवाला यह अद्भूत प्रन्थ है। t (२) अष्टक प्रकरण - इस ग्रन्थ में ८-८ श्लोक प्रमाण ३२ विभाग में महादेवश्वरूप विषयों का निरूपण किया गया है। श्री जिनेश्वरसूरिजी म० इसके टीकाकार है । (३) उपदेशपद - इस ग्रन्थ में व्यादिधार्मिक से ब्रेकर साधु पर्यन्त विविध पात्रों के लिये विविध प्रकारका उपदेश दिया गया हैं। आ० श्री मुनिचन्द्रसूरिजी म० इसके टीकाकार है ।
आदि
(४) दर्शनसप्ततिका - इस प्रकरण में सम्यक्त्वयुक्त श्रावक धर्म का १२० गाथा में उपदेश दिया गया हैं । इस ग्रन्थ पर आ श्रीमान देवसूरिजी म० की टोका है