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________________ (२) पञ्चवस्तु प्रकरण-इस ग्रन्थ में साधु-आचार सम्बन्धी ( दीक्षा-दैनिक कियाबड़ी दीक्षा-अनुयोग और गण की अनुज्ञा–संलेखना इन ) पाच विषयों का विस्तार से विवेचन किया गया है। (३) योगदृष्टि समुच्चय-इस ग्रन्थमें मित्रा-तारा आदि माठ दृष्टियों के प्रकार से 'जैन योग' पर प्रकाश डाला गया है । प्रसंग से योगाऽनश्चकयोग आदि का भी सुन्दर विवेचन दिया गया हैं । इस ग्रन्थमें प्राप्य विषय अन्यत्र दुर्लभ है । (४) योगशतक-इस ग्रन्थमें सम्यग्दृष्टि-देशविरत और सर्वविरत मुमुक्षुजन के लिये विभिन्न प्रकार का उपदेश है । प्रसंग से मरण कालविज्ञान के उपाय भी बताये गए हैं। (५) शास्त्रवाती समुच्चय-इस ग्रन्थमें चार्वाक आदि भिन्न भिन्न दर्शनों की विस्तार से समालोचना की गई है । ७०० श्लोकप्रमाणग्रंथ है-'दिक्प्रदा' नाम की टीका है। (4) सर्वज्ञसिद्धि-इस ग्रन्थमें सर्वज्ञ की सत्ता सिद्ध करने के लिए सफल एवं स्तुत्य प्रयास किया गया है । सर्वज्ञ को न मानने वाले मीमांसकमत की समालोचना की गई है । (७) हिंसाष्टक अवचूरि-इस लघुकृति में हिंसा के विषयमें सूक्ष्म विवेचन किया गया है। [२] अन्यकते कग्रन्थो की टीका स्वरूर सम्प्रति उपलब्ध ग्रन्थराशि: (१) अनुयोगद्वार लघुवृत्ति-नियुक्ति आदि में प्रसिद्ध जैनव्यापापद्धति का चारु व्युत्पादन करनेवाले मूलग्रन्थ की यह टीका है | (२) आवश्यकसूत्र लघुदोका (शिष्याहिता)-आवश्यकसूत्रों का विस्तार से रहस्य प्रकाश करनेवाले नियुक्तिप्रन्थ का सुन्दर विवरण है । यह लघुटीका २२००० लोक प्रमाण है । (३)ललितविस्तरा-जैनाचार में प्रसिद्ध चैत्यन्दनक्रिया के सूत्रों पर गाम्भीर्यपूर्ण यह वृधि है । जिसमें अन्य दार्शनिकों की मान्यताओं का सूक्ष्म तर्क से निराकरण किया गया है। इस वृत्ति से उपमितिकथाकार श्रीसिद्धर्षिगणी को सदबोध एवं जिनमत में स्थिर श्रद्धा की प्राप्ति हुई थी। (४) जीवाभिगमलघुवृत्ति-मूल उपांगसूत्र जीवाभिगम के अभिधेय को संक्षेप से इस में स्फुट किया गया है। (५) दशवकालिक लघुवृत्ति-दशवकालिक सूत्र के अर्थ मात्र को स्पष्ट करनेवाली अवचूरि स्वरूप यह वृत्ति है । (६) दशवकालिक बृहद्युत्ति--इसमें मूलसूत्रा दशवकालिक नियुक्ति का प्राचीन अनुयोगद्वार प्रसिद्ध व्याख्याशैली से विस्तार से विवरण किया गया है | (७)ध्यानशतकवृत्ति-पूर्व ऋषि प्रणीत ध्यानशतक ग्रन्थ का गम्भीर विषय आ-रौद्ध
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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