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फलतः बसे आदर और उत्साह से हमने इस कार्य को अपने हाथमें लिया और भाचार्यजी ने इस प्रस्तावित विवेचन की प्रकाशनान्त सम्पन्नता के लिये आवश्यक सभी सुविधामों कि व्यवस्था करायी।
जिज्ञासु पाठक वर्ग को यह सूचना देना आवश्यक प्रतीत होता है कि प. प्राचार्य श्री राम चन्द्रसूरि महाराजा की यह इच्छा है कि इस ग्रन्थ ही एक ऐसो भूमिका लिखी जाये जिसमें सभी शास्त्रों की प्रमुख मान्यताओं का विशद समावेश हो तथा जैन दर्शन के सिद्धान्तों का विशद समावेश हो तथा जैन दर्शन के सिद्धान्तो का ऐसा सुस्पष्ट और विस्तृत वर्णन हो जिससे जैनेतर पाठको के समझ भी जैन दर्शन की मुख्य मान्यताओं का पुरा चित्र उपस्थित हो सके। उनकी यह इच्छा मुझे अत्यन्त महत्वपूर्ण और उचित प्रतित होती है, अतः विवेचन का जो भाग इस के बाद प्रकाशित होगा उसमें इस प्रकार की भूमिका सन्निविष्ट की जाएगी। __सहृदय दाचको को यह सूचना देना भावश्यक प्रतीत होता है कि अब तक इस प्रन्थ के आठ स्तवको का विवेचन लिखा जा चुका है, शेष तीन स्तबकों का भी विवेचन यथासम्भव शीघ्र ही पूर्ण हो जाने की आशा है। प्रथ के पूरे विवेचन की उपलब्धि की माकाङ्क्षा जाग्रत् करने के अभिप्राय से 'प्रथम स्तरक' मात्र का विवेचन सम्प्रति मुद्रित कर जिज्ञासु विद्वानो के समक्ष सादर एवं सप्रेम उपस्थित किया जा रहा है।
प्रस्तुत स्तरक के पूर्वरूप का संशोधन करने का समय न मिल पाने के कारण मुद्रण में अनेकत्र कुछ त्रुटियां रह गई है जिनके लिये हमें खेद है, भविष्य में इस सम्बन्ध में पूरी सावधानी रखी जायगी जिससे अग्रिम मुद्रण इन त्रुटियों से मुक्त रह सके ।
आचार्यसम्राट श्रीहरिभद्रसूरि-विरचित ग्रन्थों का परिचय
(असीमप्रतिभाशाली श्रीहरिभवसूरि महाराज ने भव्य जीवों के ज्ञान नेत्र का विकास करने के लिये सेंकड़ों की संख्या में तर्क-आचार-योग-ध्यान आदि विषयों के अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया। उनसे रचे गये प्रत्यक चाप का अधिकांश आज अनुपलब्ध ही है, जो कृतियां आज उपलब्ध हो रही हैं और जिनके अनुपलब्ध होने पर भी संकेत प्राप्त हो रहे हैं ऐसे ग्रन्थों के परिचय के लिये यह प्रयास है जिससे ग्रन्थकर्ताकी प्रकाण्डविदत्ताका भी परिचिय प्राप्त होगा) [१] सम्प्रति उपलब्ध-स्वोपज्ञटीकायुक्त ग्रन्थकलापः--
(१) अनेकान्तजयपताका-इस ग्रन्थमें परस्परविरुद्ध अनन्तधर्मों का एक वस्तु में समावेश रूप 'भने कान्त' के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिये सत्त्वाऽसत्त्व, नित्यानित्यत्व इत्यादि विविध द्वन्द्रों का एक वस्तु में उपपादन विस्तार से किया गया है-प्रसङ्ग प्रसङ्ग पर बौद्धमत्त का कठोर प्रतिकार किया गया है -टोका में मूलमन्थ को समझने के लिये दिप्रदर्शन किया गया है।