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१२) काव्यप्रकाश टीका- मम्मट कृत काव्यप्रकाश अभ्य की दीका । १३) पायसिद्धान्तमञ्जरी- (१४)-स्यावादमअरी टीका (?) ।
अन्य स्वतन्त्र - उपलब्ध - रचनाएँ:---
१) अध्यात्मसार- इस ग्रन्थ में अध्यात्ममाहात्म्य-अध्यात्मस्वरूप-दम्भत्याग-मवस्वरूपचिन्ता -वैराग्यसम्भव-वैराग्यभंद-बैराग्यविषय-ममतात्याग-समता-सदनुष्ठान- मनःशुद्धि- सम्यक्त्व-मिथ्यास्वत्याग-असद्ग्रहत्याग-योग-ध्यान-ध्यानस्तुति-आत्मनिश्चय-जिनमतस्तुति- अनुभव- मज्जनस्तुति इस प्रकार २१ विषयों का हृदयङ्गम विवेचन किया गया है ।
२) अध्यात्मोपनिषत्- इस ग्रन्थ में शास्त्रयोग- ज्ञानयोग-क्रियायोग - साम्ययोग इन चार मेव से अध्यात्मतत्त्व का उपदेश है।
३) अनेकान्त व्यवस्था- इस ग्रन्य में बस्तु के अनेकान्तस्वरूप का तथा नेगम आदि नयों का सतर्फ प्रतिपादन है ।
- ४) अस्पृशद्गतिवाद- इस वाद में तिर्यग् लोक से लोकान्त तक के मध्यवर्ती आकाश प्रदेशों के स्पर्ण दिना मुक्तात्मा के गमन का उपपादन किया गया है।
..५) आत्मख्याति- इस ग्रन्थ में आत्मा का विभु तथा अणु परिमाण का निराकरण किया गया है।
- ६) आर्षभीयचरित्र- ऋषभदेव के पुत्र भरतचक्रवर्ती के चरित्र का काव्यात्मक निरूपण इस ग्रन्थ में है।
७) जन तकभाषा- जैन तकंपति के प्राथमिक परिचय की दृष्टि से इस ग्रन्थ में प्रमाण-- नय और निक्षेपों का सरल विवेचन है ।
८) ज्ञानबिन्दु- इस ग्रन्य में संक्षेप से पांच ज्ञान का न्याययुनत विवरण है । - १) ज्ञान सार-- पूर्णता-मग्नता आदि ३२ आध्यात्मिक विषयों का ३२ अष्टक में सुन्दर वर्णन है- इस अन्य मे मुमुक्ष के लिये अति आवश्यक ज्ञातथ्य विषयों का रहस्य बताया गया है।
१.) तिइन्वयोक्ति- तिङन्तपदों के शाब्दबोध का व्युत्पादन इस ग्रन्थ में किया गया है ।
११) देवधर्मपरीक्षा- देवों में सर्वथा धर्माभाव का प्रतिपादन करने वाले मविशेष का इस चे निराकरण है।