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________________ स्था० का टीका व हिं० वि० (स्या०) न चैकमङ्गलप्रयोगाइनेकफलापत्तिः, अनेकफलबोधकश्रुतावुद्देश्यसाहित्याविवक्षणात; अन्यथा 'सर्वेभ्यो देर्शपूर्णमासौ' इत्यत्रापि तत्प्रसङ्गात् । कादम्बर्यादौ समाप्तिकामनया मङ्गलाचारे मानाभावाद् न दोष इत्याहुः । अनेकफलकारकर्मण उद्देश्यानुद्देश्य-प्रधानाप्रधानबहुविधफलदर्शनाद् नैतद् युक्तमित्यपरे । यवि यह कहा जाय कि 'विघ्नध्वंस आदि उस सभी को यदि मङ्गल का फल माना जायगा तो पक मशाल का अनुष्ठान करने पर सभी फलों को एक साथ उत्पत्ति होने की आपत्ति होगी अतः उक्त सभी को मङ्गल का फल मानना उचित नहीं है तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि जो श्रुतियां अनेक फल देने वाले कर्मों का उपदेश करती है र का केले पाकनुपान से हाथी फलों के साहित्य यानी साथ उत्पन्न होने में तात्पर्य नहीं होता। यदि क्षतियों का ऐसा तात्पर्य हो तो 'लभ्यो दर्शपूर्णमासौ-सभी फलों के लिये दर्श और पूर्णमास का अनुष्ठान करना चाहिये' इस अति के अनुसार दर्श पूर्ण मास के यक अनुष्ठान से सभी फलों की उत्पत्ति होनी चाहिये पर पेसा नहीं होता अतः अनेक फल देने वाले कर्मों के सम्बन्ध में यहि मानना उचित है कि पेसे कर्म जय जिस काम की कामना से किये जाते है तब उनसे उस फल की उत्पति होती है। शास्त्र के अभिप्रायानुसार ऐसे कर्म एक समय एक हो फल की कामना से किये जाते है जिससे पक कम से एक ही समय अनेक फलों की उत्पत्ति नहीं होती। 'जो कर्म जिस फल का जनक होता है उस कर्म से उस फल को उत्पत्ति तभी होती है, जब बह कर्म उस फल की काममा से किया जाता है'-इस व्यवस्था को स्वीकार करने में एक लाभ यह है कि कादम्बरी में मङ्गल के होते हुये भी समाप्ति न होने से जो का अनुमान करना उचित है । इस सूत्र द्वारा यह सिद्धान्त स्थिर किया गया है कि कुछ प्रदेशों में होली आदि पर्यों का प्रचलन देखकर उन पत्रों की कर्तव्यता के बोधक जिस श्रुतिवचन का अनुमान किया जाता हैं, वह उन फतिषय प्रदेशों के निवासियों के लिये ही सीमित न होकर मनुष्यमात्र से सम्बन्धित होता है, अतः जिन प्रदेशोंमें होली आदि पों का प्रचलन है, केवल उन प्रदेशों के निवासियों के लिये ही ये अनुष्ठेय नहीं हैं किन्तु सभी मनुष्यों के लिये अनुष्ठेय हैं | ऐसा मीमांसकमत है । ___ स्मृति और शिष्टाचार से श्रुतिका अनुमान करने के लिये इस अधिकरणमें जो न्याय निश्चित किया गया है उसे होलाकाधिकरणन्याय कहा जाता है, इस न्याय के अनुसार यह अनुमान करना पूर्णतया संगत है कि शिष्टजन मङ्गल के उत्तः फलोमें से जब जिस फट के लिये माल का अनुष्ठान करते हैं तब मङ्गल उस फल का उत्पादक होता है। १ दर्शपूर्णमासौ-वैदिक धर्म में दर्श और पूर्णमास नाम की दो दृष्टियां हैं, जिस प्रकरण में इन इष्टियों का निर्देश किया गया है, उस प्रकरण में जितने फलों की चर्चा पहले की जा चुकी है, उन सभी फलों के लिये इन इष्टियों का विधान है । उन फलों में से जिस काम की कामना से जब इन इटियों का अनुष्ठान किया जाता है तब उस फल की प्राप्ति होती है, एक साथ सभी फली की कामना से इनका अनुष्ठान श्रतिसम्मत नहीं है। (चाल)
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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