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________________ ........ ... ... शा० वा समुच्चय (स्या०) "श्रावश्यकत्वाद् विघ्नध्यस एव मालफलम् , समाप्तिस्त्वसति प्रतिबंधे स्वकारणादेव भवति, कारीरीत इवावग्रहनिवृत्तौ वृष्टिः । 'निर्विघ्न परिसमाप्यताम्' इति कामनाऽपि 'सविशेषणे हि.' इतिन्पायाद् विनध्वंसमानावगाहिनी"-इत्यपि मतं न रमणीयम्, माल बिनाऽपि विनध्वंसस्य प्रायश्चित्तादितो भावेन व्यभिधारात् । विघ्न-वंस को ममल का फल मानने वाले नवीन मास्तिकों का मत है कि समाति माल का कार्य नही अपितु उसकी सम्पन्नता के लिये भावश्यक होने से विघ्न सही मजल का कार्य है, क्योंकि माल से प्रतिवन्धक विघ्न की मिति होने पर समाति अपमे सर्वसम्मत मण्य कारणों से ही ठीक उसी प्रकार सम्पन्न हो सकती है विशेषण और उपलक्षण में अन्य लक्षण्य-विशेषण और उपलक्षण में उनके लक्षणों से जो वेल. शुण्य ज्ञात होता है उससे अतिरिक्त भी उनमें वैलक्षण्य होता है, जैसे विशेषण अभावीयप्रतियोगिता का सदर, मसिरियनिगति शेगम के संसर्ग का पटक तथा विशिषमें रहने वाले धर्म का आश्रय होता है; उपलक्षण ऐसा नहीं होता। इस विषय को इस प्रकार समझा जा सकता है, पाक से नीलरूप को खो कर रक्तरूप को प्राप्त हुआ घट जिस समय जिम स्थान में रहता है उस समय उस स्थान में "इदानीमत्र नोलपटो नास्ति"-इस समय यहाँ नील घट नहीं है यह प्रतीति होती है। स्पष्ट है कि इस प्रतीति में नील रूपको घट में अगर उपलक्षण माना जायेगा तो यह प्रतीति न हो सकेमी; क्योंकि प्रतीति के समय नील से उपलक्षित घट के विद्यमान होने से नील से उपलक्षित घट का अभाव न हो सकेगा, और जब उक्त प्रतीति में नील रूपको घट का विशेषण माना जायेगा तब उक्त प्रतीति के समय नीलरूपविशिष्ट घट के अभाव के होने में कोई बाधा न होने से उक्त प्रतीति निर्वाध रूप से सम्पन्न हो सकेगी । अतः यह निर्विवादसिद्ध है कि उक्त प्रतीति में नीलरूप ट का दिशेपणा होने से ही प्रतियोगिता का अवच्छेदक है, उपलक्षण होने से नहीं। इसी प्रकार 'भूतलं नीलघटवत्-भूतल नीलबट से सम्बद्ध है। इस बुद्धि में नीलरूप पट में कभी विशेषण होता है और कभी उपलक्षण होता है, जिस बुद्धि में घर में मीलरूप विशेषण होता है, उसे नीलरूपविशिष्टघट के वैशिष्टय को विषय करने वाली बुद्धि कहा जाता है। उसमें भूतल में नीलघट के सम्बन्ध के रूप में नीलरूपविशिष्टघटप्रतियोगिकसंयोग का भान होने से नीलरूप सम्बन्ध का घटक होता है तथा उस बुद्धि की उत्पत्ति के पूर्व 'घटो नीलः - एट नीलरूप से विशिष्ट है इस बुद्धि की आवश्यकता होती है। जिस बुद्धि में घर में नीलरूप उपलक्षण होता है उसे नीलरूपोपलकितघटवैशिष्टयविषयक कहा जाता है, उस में भूतल में नीलपट के सम्बन्ध के रूप में केवल संयोग का भान होने से नीलरूप सम्बन्ध का घटक नहीं होता, और उसकी उत्पत्ति के पूर्व 'घटो नीलः' इस बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती । इसी प्रकार नीलरूप जब घट में विशेषण होता है तब नीलरूपविशिष्टघट में रहने वाला पाकपूर्व. कालवृत्तित्व नीलरूप में भी रहता है, किन्तु नीलरूप जब घर में उपलक्षण होता है तब नीलरूपोपलक्षितघट में रहनेवाला पाकोत्तरकालकृत्तित्व नीलरूप में नहीं रहता ।
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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