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स्या० फ- टीका भौर हिन्दी विवेचना
मुनि---मुनिजनों के मनरुपी माकन्द-आम्न के लिए शुकस्वरुप । जिस प्रकार शुक पक्षों आम्र की ओर निरन्तर आकृष्ट रहता है, उसके सम्पर्क में स्थित रहना चाहता हैं, उसे चखते कभी तृप्त नहीं होता उसी प्रकार महावीर मुनि-मानस की ओर सदा आकृष्ट रहते है, अनकन दुनियों ने किया का चिरप बने रहते हैं. पचं ध्यान का विषय बने रहने में कभी थकते नहीं । इस कथन से यह संकेत प्राप्त होता है कि मुनिजनों को अपना चित्त इतना निश्छल मृदु और मधुर बनाना चाहिए कि सर्वत्र विरक्त भी महावीर उसे अपना श्राश्रय बनाने के लिए आकर्षित रहे। ___महावीर में राग और राग-योग्यता स्थायी रूप से समाप्त हो जाने के कारण यदि उनमे राग-साध्य आकर्षण की असम्भाव्यता के नाते यह अर्थ उचित न लगे. तो इस शब्द का एक दूसरा अर्थ लेना चाहिए। वह यह कि महावीर मुनि जनों के मनरूपी माकन्द के शोभाधायक शुक हैं । अर्थात् जैसे शुक के सम्पर्क से माकन्द को मनारमना बढ़ती है. शुक के असन्निधान में यह उपेक्षित एवं शोभाहीन रहता है, उसी प्रकार मुनिजनों का मन महावीर के ध्यानात्मक सम्पर्क से रमणीय हो जाता है। जो मुनिजन महावीर के चिन्तन से धञ्चित रहता है, यह अशोभन होता है। मुनिमन की शोभा इसी में है कि बद्द महावीर का निरन्तर चिन्तन करे ।
सन्ना•--सत्पुरुषों में नासीर--अग्रणी । ___ जो पुरुष संसार के विषय-सुग्वों में लिप्त नहीं होते, धर्मोपार्जन के सभी स्रोतों को समानभाव से सय के लिए खुला रखने को नैतिकता मानते है, आत्मिक उत्थान में ही मनुष्य जन्म की सार्थकता समझते है, उन्हें सत्पुरुष कहा जाता है। महावीर से पुरुषों में अग्रणी थे।
शिवा०....कने- इस शब्द के दो अर्थ है शिवमार्ग-कल्याणमार्ग-मोक्षमार्ग पर न्धय स्थित होने वाले तथा दूसरों को उस मार्ग पर स्थित करने वाले। महावीरने मसार से विरक्त हो स्वयं इस मार्ग को प्रहण किया. साथ ही अपने आचरणों और उपदेशों से अन्य अनेक लोगों को उस मार्ग का पथिक बनाया।
वीराय-नाकदेशग्रहणे नामग्रहणम्-नाम का एक भाग कहने पर . पूरे नाम का बोध होता है' इस नियम के अनुसार 'वीर' का अर्थ है महावीर, बोधीसवे तीर्थकर श्री महावीर स्वामी ।।
नित्यम्-प्रतिदिन, प्रतिक्षण |
'नमः'--'नमः' शब्द से महावीर स्वामी को नमस्कार कर व्याख्याकार ने उनके उत्कर्ष का ज्ञापन किया है क्यों कि उत्कर्ष योधक व्यापार को ही नमस्कार कहा जाता है. और यह व्यापार यहां पर 'नमः' शब्द का प्रयोग ही है। ___ अथवा नमस्कार द्रव्य-भायसन्कोचस्वरूप है । हस्त पाद शिर आदि द्रव्यों को संकोच कर नमनविधि योग्य विशिष्ट अवस्था में रखना यह द्रव्य नमस्कार है, पर्व इदय