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शाखवा समुचय 'जन्मजलधेस्तीराय' जम्मरुपी समुद्र के तटस्वरुप ।
जन्म-बार-बार जन्म होना यह जन्मों की अविच्छिन्न परम्परा समुद्र के समान है। से समुद्र में पडे मनुष्य का समुद्र से बाहर हो पाना कठिन होता है उसी प्रकार संसारासक्त मनुष्य का पुनर्जन्म के चक्कर से याहर हो पाना भी कठिन होता है। पूर्व जन्म में किये कर्मों के फल-भोगने के लिए नया जन्म होता है और नये जन्म में किये जाने वाले कर्मों के फल-भोगने के लिए पुनः अगले जन्म की आवश्यकता होती है। इस प्रकार जन्मों की श्रखला बढती चलती है, उससे छूट पाना दुष्कर होता है। इसीलिए जन्म एक प्रकार का समुद्र । महावीर प्रभु उस समुद्र के तट है । जिस प्रकार तट पा जाने पर मनुष्य समुद्र को पार कर लेना है उसी प्रकार महावीर प्रभु को पा कर, उनके जीवन क्रम को आलम्बन रख उनके उपदेश को अपना करके मनुष्य जन्मों के सागर को तैर जाता है।
'धीरात्मने'–'धीर भान्मा चिस यस्य तस्मै' इस व्युत्पत्ति के अनुसार इस पद का मर्थ है धीर चित्त से युक्त । जिसके चित्त में धैर्य हो, अनुचित उतावलापन न हो, मध्यात्म मार्ग पर चलते हुए लक्ष्य की प्राप्ति में विलम्ब होने से जिसका चिन अधीर म हो, जिसका यह अटल विश्वास हो कि उसकी अध्यात्मयात्रा पक दिन अवश्य परी होगी वह अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करेमा ।
अथ धीरात्मा' का मतलब साधना काल में अनेक उपस्थिर उपद्रयो में जो अपनी साधना में व्याकुल न हो । अडिग रहे स्थितप्रज्ञ रहे, जिस थद्धा से साधना में प्रवेश किया था उसमें लेश भी न्यूनता न होने देते हुए घरना अधिकाधिक प्रबलता करने वाले।
गम्भीरागम-म्भीर आगम-शास्त्र के वक्ता । मागम वह शान है जिसमें भून, भविष्य और वर्तमान तीनों काल के शातत्य श्रेष्ठ अर्थों का वर्णन हो, महावीरने जिस आगमशास्त्र का उपदेश किया है वह असर्वज्ञात सभी आगमों की अपेक्षा गम्भीर है । गम्भीर इस लिए है कि उसके उपदेष्टा महावीर सर्व तीर्थ कर है । अतः अपने आगममें पूर्वके सभी असर्वभागमो के शानका समावेश करना, भविष्य के लिए कोई बात छूट न पाये इसका ध्यान रखना नथा वर्तमानकी कोई समस्या असमाहित न रह जाय इस घातकी सावधानी रखना उनके लिए मत्यावश्यक था।
__ अथवा भगाध स्यादवाद सिद्धांत, अगाध जीवाजीयादितत्व अगाध अष्टविध शानाधरणीयादि कम , पदार्थ विस्तार आदिसे प्रयुक्त गाम्भीर्य चाले आगम पदार्थ के वक्ता है।