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स्या० क० टीका और हिन्दी विवेचना
इस कथन से यह सूचित होता है कि महावीर प्रभु का जन्म एक विभय -- सम्पन्न परिवार में हुआ था । उनके जन्म से पूर्व उनके परिवार के लोग विभव को माया से उसके अर्जन और रक्षण में उसुक रहा करते थे किन्तु भगवान महावीर को विभव के सम्बन्ध में वैराग्य बुद्धि रहती थी । वे समझते थे कि विभघ में राग करना स्वयं उनके लिए तथा मानवजात के लिए अच्छी बात नहीं है। उनके इस ज्ञान से विभव की शोभा बढ गई क्योंकि इस ज्ञान के होने से उनके परिवार का चिरसवित विभव अन्य जनों के भी विनियोग में आने योग्य हो गया । विभव की शोभा इसी में है कि उससे बहुत लोगों को लाभ पहुंचे और विद्या, धर्म तथा दीनों की सहायता के कार्य में उसका व्यय हो ।
( २ ) 'नीगगताया धीः एव राजन् विभयो यस्य तस्मे इस गुत्पत्ति के अनुसार इसका अर्थ है - बैंगग्य ही मनुष्य के महल का मूल है यह बुद्धि ही जिसका शोभन धन है, जो लोकप्रसिद्ध धन को धन न मान कर वैराग्य बुद्धि को ही अपना उसम धन समझता है।
(३) मीरागतासहिता धी: नीरागना धीः मध्यमपदलोपी समास, सैव राजन विभयो यस्य तस्मै' इस व्युत्पत्ति के अनुसार नीरागता शब्द का वैराग्य-प्रधान चरित्र. अर्थ और 'श्री' शब्द का ज्ञान तथा दर्शन अर्थ लेने पर इस शब्द का अर्थ है चारित्र, ज्ञान और दर्शन ही जिसका शोभन धन है, जो सम्यक् चारित्र, सम्यक् छान एवं सम्यक दर्शन से सम्पन्न होने में ही अपनी शोभा मानता है ।
(४) 'मीगगतायाः जनिका धी: नीरागताधीः, मैं राजन् विभवो यस्य तस्मै' इस व्युत्पत्ति के अनुसार इसका अर्थ है- वैराग्य उत्पन्न करने वाली बुद्धि - 'संसार राग द्वेष से भरा होने के कारण दुःखमय है । संसार की वासनाओं से आत्मा को उपर उठाने का प्रयत्न करना ही सुख और शांति का उपाय है।" इस ज्ञान से वैराग्य का उदय होता है, यह ज्ञान ही जिसकी दृष्टि में शोभन धन है ।
(५) 'नीरागताची राजद्विभवाय' पद में विभव शब्द का एक दूसरा भी अर्थ हो सकता है वह यह है- 'विशिप्रो भयो यस्य स विभवः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार विशिष्ट जन्मशाली' विभव शब्द का यह अर्थ लेने पर उसके साथ 'नीरागताधीराजन्' शब्द का कर्मधारय समास होगा और पूरे शब्द का अर्थ होगा जो वैराग्यबुद्धि से राजिन हो रहा हो तथा जिसे विशिष्ट जन्म प्राप्त हुआ हो । महावीर का जन्म एक विशिष्ट जन्म था क्योंकि उस जन्म में उन्हें कैवल्य सिद्धि प्राप्त हुई थी, और वे तीर्थ कर हुए थे ।