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स्याद्राद कल्पलता
( माल )
ऐन्द्रश्रेणिनताय दोपहुतभुनीराय नीरागता
___धीराजद्विभवाय जन्मजलधेस्तीराय धीरात्मने । गम्भीरागमभाषिणे मुनिमनोमाकन्दकीराय स
नासीराय शिवाध्वनि स्थितिकृते वीराय नित्यं नमः ॥१॥ ... ...---.-..
हिन्दी विवेचना
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ऐन्द्र ---इन्द्र आदि देवगणों द्वारा नमस्कृत ।
सम्यक मान, सम्यक दर्शन और सम्यक् चारित्र का चरम विकास कर अन्तिम तीर्थकर श्री महावीरप्रभुने जब कैप एवं परमेश्वरत्व प्राप्त किया तब न्द्र मादि देवताओं ने उनके निकट पहुंचकर उनकी स्तुति और वन्दना की । इस शन्द शारा यही घटना पुराणमें सूचत की गयी है। दोष-दोषरूपी अग्नि के लिए जलस्वरूप
राग, द्वेष और मोद्द को दोष कहा जाता है। ये दोष मनुष्य को आग के समान दग्ध करते रहते है। महावीर प्रभु इस दोषाग्नि के लिए जलस्वरुप है। जल का सम्पर्क होने पर जैसे आग बुझ जाती है वैसे महावीर प्रभु की उपासना करने पर मनुष्य के मारे दोष दूर हो जाते है । नीरागता.-इस विशेषण के कई अर्थ।से
(१) 'नीरामताया धिया राजन् विभवो यस्य तस्मै इस व्युत्पत्ति के अनुसार इस का अर्थ है-'नीरागता' राग से शून्यता अर्थात् वैराग्य के मान से जिसके विभन्न की शोभा हो।
1- रटन्य उ• पुराण, पृष्ठ ५६७ श्लोक १५५