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विषय
पृष्ठाङ्क विषय
पृष्ठा 'मह' प्रत्यय की प्रत्यक्षता में विस्तृत आशंका चिन्तामणि कारमत-निरसन
-पूर्वपक्ष २४८ तृतीयक्षणभाविज्ञान को द्वितीय क्षणभाविज्ञान ज्ञान की स्वप्रकाशता का खण्डन-पूर्वपक्ष २४९
का प्राहक मानने में भापत्ति २६६ त्रिपुटीप्रत्यक्ष से स्वप्रकाशत्व की सिद्धि
'भत्र प्रमेयं' इस ज्ञान से प्रवृत्ति की आपत्ति दुःशक्य २५०
की आशंका २६७ इन्द्रियसन्निकर्ष के अभाव में ज्ञान प्रत्यक्ष
प्रवृत्ति के प्रति मुख्यविशेष्यता से ज्ञान की कैसे ! २५१
हेतुता का खण्डन २६७ पूर्वोक नियम में दूषण
२६१ सा सजावा गौस आपत्ति ज्ञान मनोग्राह्य है-पूर्वपक्ष अनुवर्तमाम २५३
का परिहार २६८ प्रत्यक्षत्व जातिरूप हैं
२५४ ज्ञान को मनोग्राह्य मानने में गौरव दोष २६९ ज्ञानसामग्रीजन्यतावच्छेदक मात्र ज्ञानत्व है २५४ स्वप्रकाश ज्ञानपक्ष में गौरव आपत्ति का ज्ञान की ज्ञानवेद्यता के नियम का भङ्ग २५५
परिहार २७० अनुभवबल से स्वसंवेदितत्व की सिद्धि
प्रत्यक्षविषयता में इन्द्रियसन्निकर्षनियामकत्व ___-उत्तरपक्षारम्भ २५६
का खण्डन २०१ ज्ञान स्वप्रकाश है
२५७ स्पष्टतानामक विषयता साक्षात्कारअनन्ताकारतापत्ति का परिहार
नियामिका है २७२ कर्ता-कर्म और क्रिया का ज्ञान
अनन्यपदार्थ में विषय-विषयीभाव का समर्थन २७३ परप्रकाशमत में ज्ञानप्रत्यक्षानुपपत्ति २५९ स्वविषयत्व स्वयवदारशजत्वरूप नह' हैं २७३ ज्ञान में वर्तमानकालोनत्वज्ञान की अनुपपत्ति २६० 'प्रत्यक्षाजनक-प्रत्यझाविषय' नियम भङ्ग २७४ 'मयि घटज्ञानं' अनुभव में व्यवसायप्रत्यक्षानु- इन्द्रियग्रास्यत्व का नियामक लौकिकविषयत्व पपत्ति २०
नहीं है २७४ ज्ञान के अलौकिक प्रत्यक्ष को उपपत्ति का ज्ञान के मानसप्रत्यक्ष का मन्तव्य अयुक्क है २७५
निष्फल प्रयास २६१ प्रत्यक्षत्व का जातिरूप न होना इष्ट है २७५ चाक्षुषत्वांश में भ्रमज तक दोष से 'घटं किञ्चिदंश में अलौकिक वहिप्रत्यक्ष में
पश्यामि' की उपपत्ति अशक्य २६२ अपत्यक्षस्व की आपत्ति का परिहार २७६ व्यवसायान्तर की उत्पत्ति की मिथ्या कल्पना २६२ पुनः अप्रत्यक्षत्व आपत्ति का परिहार २७६ 'विशेष्य में विशेषण ....' इत्यादि रीति से - स्पष्टता नामकविषयता ही प्रत्यक्षत्व है २७८
ज्ञानप्रत्यक्ष का परिहार २६३ प्रत्यभिज्ञा का पृथक् परिगणन अनुचित नहीं है २७९