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________________ विषय पृष्ठाङ्क विषय पातजलमत से समर्थन परमार्थवादी जैन का उत्तरपक्ष वैराग्य के पर और अपर भेद __७७ शक्तिरूप में प्रत्येक भूत में चेतना के पातञ्जल मत की समीक्षा अस्तित्व की शंका १०७ चतुर्विध संप्रज्ञात समाधि का शुक्लध्यान के शक्ति-चेतना के भेदाभेद उभयपक्ष में क्षति १०८ दो भेद में अन्तर्भाव ८३ मनभिव्यक्त रूप से चैतन्य भूतो में नहीं ध्यानात्मक तप ही परमयोग है-मुक्ति का हो सकता ११० का कारण है ८५ भूतस्थ चेतना का आवारक भूत नहीं १११ शुद्ध तय भी धर्म हैं ? हाँ ८६ कायाकारपरिणाम का अभाव आवरण नहीं ११२ 'शुदतप केवल मोक्षजनक ही है' इस विधान ___ में आशंका-पूर्वपक्ष ८७ कायाकार परिणाम चेतना-व्यजक नहीं है ११३ अर्धस्वीकार से उक्त शंका का समाधान लोकसिद्धानुमानप्रमाण्यवादी नव्य नास्तिक का -उत्तरपझ ८८ पूर्वपक्ष ११५ निरन्वयनाशवादी बौद्धमत का निराकरण ९१ परामर्श से अनुमितिस्थानीय स्मृति के जन्म विवेकीजनो के लिए धर्मभिन्न सब दुःखमय है ९४ को मान्यता ११६ परिणाम से विषयो की दुःखमयता ९५ गौरवादि दोष प्रदर्शन ११८ ताप से विषयों की दुःखरूपता अनुमानप्रमाणान्तर प्रसंग नहीं है ११९ संस्कार से विषयो की दुःखरूपता प्रत्तोति और लिङ्ग से काम को सिद्ध १२० दुःखानुषङ्ग के कारण दुःखरूपता " कालबत् आत्मा का स्वीकार अनिवार्य हैप्रसङ्गसङ्गति से शास्त्रपरीक्षा का उपक्रम ९६क उत्तरपक्ष १२१ प्रथम नास्तिकमत का उपन्यास ९७ जातिस्मरण से मात्ममिद्धि १२२ अनुमान प्रामाण्य का अपलाप ९८ जातिस्मरण का प्रभाव भी विचित्रकर्मविपाक बौद्धदर्शन के अनुसार पदार्थ का स्वरूप से प्रयोज्य है १२३ [प्रासनिक] १०० स्मरणप्रतिबन्धक-अदृष्ट की कल्पना आवश्यक १२४ दृष्ट साधर्म्य से अनुमान प्रमाण्य का स्मृति में प्राग्भवीय संस्कार अनुपयुक्त है १२५ निराकरण १०१ वर्चमान जन्म में अतुभूत पदार्थ के स्मरण शन्दाऽनुमानाऽभ्यतर प्रामाण्य की आपत्ति से आत्मसिद्धि १२७ का परिहार १०२ उपादान से अनुभून अर्थ का स्मरण उपादेय शब्द को प्रमाण न मानने में कारेण १०५ को नहीं हो सकता १२८
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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