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-: विषयानुक्रमणिकाःविषय
पृष्ठाक विषय स्याद्वादकल्पलता-मजला लोक
२ दर्श-पूर्णमास का अर्थ (टि.) मङ्गलश्लोक का हिन्दी विवेचन
२ 'प्रत्ययाना' नियम में दूषण शाखावा. मङ्गलश्लोक
शास्त्रबार्ता अन्ध का प्रयोजन निर्देश [मङ्गलवाद पूर्वपक्ष]
तत्त्वविनिश्चय का अर्थ (टि.) समाप्ति के प्रति मङ्गल में व्यभिचार उद्भावन ९ मुक्ति में सुख नहीं हैं-[पूर्वपक्ष] मङ्गल स्वरूप (टिप्पन)
९ 'नित्यं ।' अति नित्य सुख में प्रमाण नहीं है- ३६ समाप्ति स्वरूप (टि.)
, मुक्ति में सुख हैं-उत्तपक्ष अन्वय और व्यतिरेक का स्वरूप (टि.) १. अवेद्य दुःखाभाव पुरुषार्थ नहीं है । अन्य - व्यतिरेक व्यभिचार का स्वरूप (टि०)१२ देहाभाव मोक्षसुख में बाध नहीं अन्वयव्यभिचार से कारणता का विरोव्य पाप से दुःख और धर्म से सुख अश
(टि.) १२ पाप और धर्म के विविध हेतु। व्यतिरेक व्यभिचार से कारणता का विरोद्धव्य अहिंसा आदि के साधन साधुसेवा इत्यादि ५५ अंश
(टि०) १३ धर्मसाधना का अधिकारी कौन ! समाप्ति में विघ्न विशेषण या उपक्षण-क्या अधिकारप्राप्ति के लिये ३२आदिकमोपदेश ५९ मानना
१४ अपुनर्बन्धक दशा-निर्णय के उपाय विशेषण का स्वरूप (टि.)
१५ धर्म ही उपादेय है उपलक्षण का स्वरूप (दि.)
अविरत सम्यग्दृष्टि की निषिद्ध कर्म में प्रवृत्ति मङ्गल का फळ विघ्नध्वंस सम्भवित नहीं हैं। १७
स्यो। १३ विशेषण और उपलक्षण में वैलक्षण्य १७ प्रवृत्ति में इष्टसाधनता-ज्ञानहेतुता विचार ६१ विश्नप्रागभाव भी मङ्गल का फल नहीं है। १९ मोह की प्रबलता से निषिद्ध कर्म में प्रवृत्ति की। शिष्टाचारपालन भी मङ्गल का फल नहीं है २०
उपपत्ति ६५ विघ्नध्वंस ही माल का फल है-उत्तरपक्ष २२ प्रियसंयोगादि की अनित्यता आत्माश्रय दोष स्वरूप (टि०) २३ सांसारिक सुख भी दुःखरूप है भावविशेष का विवरण (टि०)
२३ धर्म भी त्याज्य है [पूर्वपक्ष) निकाचित शब्दार्थ (दि.)
२५ धर्म द्वैविध्य बताकर पूर्वपक्ष के आक्षेपों का अपवर्तना शब्दार्थ (टि०)
समाधान ३ 'अनुमान ' जैमिनिसूत्र का विवरण (टि.) २६ ज्ञानयोग का स्वरूप और फल
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