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अधास्यैव दर्शनपरिभरपाअनितान् व्यअनपर्यायानाहमुहम्- --मट कर्म संस्कारः पुण्यापुण्ये शुभाशु रे ।
____ प्रधिम' तथा शशः पर्यायास्तस्य कार्तिताः ||१०|| 'अहम्' इति वैशेपेक्षाः, 'कर्म' इति नै गाः, 'संस्कार' इनि सौगत :, 'पुण्यापुण्ये' इनि पद वादिनः, 'शुभाशुभे' इनि गणकाः, धर्माधों' इति 'सामाः, 'पाश' पति यौवाः, एवमेने तस्य =अदृष्टम्य, फ्यायाः व्याजनपयाः कीर्तिताः । समानप्रनिनिमितकत्वघटिवपर्यायन्वं तु न सर्वश्रेति चोध्यम् ॥१७॥
म अतिरिकः न्यायालीक' प्राथ में यह भी विवेषन किया गया है कि मोनोमय के अनुच्छान में मोक्षार्थी की जो प्रवृत्ति होती है वह पूर्वजन्मों पर वर्तमान प्रन्म को क्रिया में से इस्पन बापामक कर्मों के ही क्षयार्य करती उचित है कि उन किया से कालान्तर में होने वाले दुको के पार्थ, क्योंकि कुल उत्पन्न होने पर उसका क्षय पुरुषप्रयत्न के बिना अमागास ही हो जाता है. इसलिये मोक्षोपाय प्रवृनि की सार्थकता के अनुरोध से भो असिसि आषषयक है।
यह भी पक यान ध्यान देने योग्य है कि लोक की स्थिति मो नहर पर ही आभित है, भन्यथा अन्य कोई दोकघारक न होने से ज्योतिश्यक पहननयमाडल मादि गुरुप दार्थों का पतन हो जाने से लोकस्थिति दुर्घट हो जायगी। 'लोक की स्थिति प्रवाधीन है-' या नहीं कहा जा सकता, क्योंकि मुन मारमधिशेप से भिन्न भतादिसिस सर्वत्र समिमाम विर का नामामों में निरास किया गया है। इस प्रकार डर्षक मनेक युशियों से उपन्य की सिद्धि सम्भय होने से इस विषय पर मोर मधिक विचार कामा ह है।
जसे सू का किरणजाल रहने पर उस्ट पक्षी भी बन कर किसी कोमे में छिप जाता है उसी प्रकार मनिजामतरूपो सूर्य के पासिशिरूपी किरणसमूह का प्रसार हो जाने पर बेबारे माया रूपी इलक को मो मोच मेकर फिपी कोमे में छिप मामा दी श्रेयस्कर । ॥१०६.
[मष्ट के भिन्न-भिन्न दर्शनाभिमत भिन्न भिन्न नाम] इस कारिका में भ्रष्ट के उम पयायों का सकलेन किया गया है जो विभिन्न दर्शनों में परिभाषित हुये हैं। काका का अर्थ इस प्रकार है
उक्त युक्तियों से शाम्यधिनित पयं शास्त्रनिविस क्रियाभों के व्यापारूप में कालातरभावो उनके फलों के निर्यातक पदार्थ का सिजि होती है, उसे वेदोनिको ने 'भार', जनों ने 'कर्म', बोली मे 'संस्कार', नेदप्रामाण्यवादी मीमांस आदिकों ने 'पुगपापुण्य', गणको ज्योतिषियों ने 'शुभाशुम', मषिका ने 'धर्माधर्म', तथा देवी ने 'पाश' कहा। इस प्रकार ये सारे नाम उसपा के पर्याय है। ये पर्याप मो पानपोष है, नन पर्याय का अर्थ है विभिन्न «il से पक ही सर्थ के बोधक विभिन्न शम्य । र यस नगर्याय इसी